Reality Of Actual Contact With Oneself

Author
Judith Blackstone
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Image of the Weekअपने अस्तित्व से अकाल्पनिक संपर्क की सत्यता द्वारा जूडिथ ब्लैकस्टोन

हमारे अपने अस्तित्व से अकाल्पनिक संपर्क की सत्यता ही , साथ ही में, अपने वातावरण से भी अकाल्पनिक संपर्क है| ये हमारे स्वभाव का एक बहुत ही रोचक पहलु है कि शारीर एवं मन के अलगाव को भरने की प्रक्रिया , ऐसी ही है जैसी अपने अस्तित्व और अपने वारावरण के अलगाव को भरने की प्रक्रिया है, अथवा अपने और अन्य के अलगाव को भरने की प्रक्रिया है | हम सभी का जीवन , कुछ हद तक, काल्पनिक है अथवा मोह माया से भरा है | हम सब जीवन को अपने पुराने अनुभवों के चश्मे के माध्यम से देखते है, एक आदर्श साँचे में , हमारी शुरुआती समझ के माध्यम से|हम अपनी परिस्थितियों को अपनी आशाओं एवं अपने भय के अनुसार रंग देते हैं| हम एक काल्पनिक बांध अपने और अपने वातावरण के बीच बना देते हैं | हम ऐसा विचारते हैं कि बाहरी सँसार और हमारा आतंरिक अस्तित्व , जो इस संसार को देखता है, वो अलग है|

जैसे जैसे हम सँसार एवं अपने आप से ज्यादा संपर्क बनाते हैं वैसे वैसे वो चश्में रूपी छलनियाँ (filters) एवं वो मानसिक कल्पनाएँ धूमिल होने लगती हैं | हम पाते हैं कि हमारे अपने अस्तित्व में और जिन्हें हम बाहरी वस्तु मानते हैं, कोई अलगाव नहीं है| हमारा सारा अनुभव , अंदरूनी एवं बाहरी, एक साथ ही, हमारी विस्तृत चेतना में एक एकल , समिश्रित फैलाव के रूप में पंजीकृत होता है | जीवन से सीधा , तात्कालिक संपर्क ऐसा अनुभव कराता है मानो वो उसी वक़्त घटित हो रहा हो, वो वास्तविक महसूस होता है: वो संपूर्ण महसूस होता है: और हमारे अस्तित्व का कोई भी भाग उस उपस्थित क्षण (present moment) के अनुभव से वंचित नहीं रह जाता|

वो वास्तविकता, जो हिन्दू प्रार्थना ( ॐ असतो मा सद्गमय। ,तमसो मा ज्योतिर्गमय।, मृत्योर्मामृतं गमय ) विचारने को कहती है , वह वो सँसार नहीं है, जिसे लोग अलग,स्थूल , सांसारिक वस्तुओं वाला मानते हैं | अध्यात्मिक अभ्यास की सत्यता, एक स्थिति पर खुलते जाना है: वस्तु विषय पे नहीं , पर उससे भी अधिक आश्चर्य चकित करने वाली, एक समिश्रित, चमकदार , पारदर्शिता, जो सभी में व्याप्त है | हम इस आयाम में , सांसारिक विश्व को किनारे रख कर, नहीं पहुँच सकते | यह आवश्यक है कि हम , इस स्थूल, वस्तु विषय वाले विश्व को अपनाएं और उसे भेदते हुए आगे बढ़ें, एवं अपनी अलग शारीरिक देह में पूरी तरह बस जाएँ, ताकि अपने अस्तित्व को अनुभव कर सकें, साथ ही में अपने वातावरण को भी अनुभव कर सकें, एक एकल फैलाव लिए हुए, मूलभूत, चेतना के रूप में|

मनन के लिए मूल प्रश्न : आप इस धारणा को कैसा मानते हैं कि यह अवश्यक है कि हम अपनी शारीरिक वास्तविकता को पूर्ण रूप से अपनाएं एवं उसे भेदते हुए आगे बढ़ें ,” जिससे हम अपने अस्तित्व एवं अपने वातावरण का अनुभव, एक एकल, फैलाव लिए हुए, मूलभूत चेतना के रूप में ,कर सकें? क्या आप उस समय की एक ऐसी निजी कहानी साझा कर सकते हैं , जब आपकी चश्मे रुपी छलनी(filters) एवं मानसिक कल्पनाएँ लुप्त होने लगी हों ? आपको उपस्थित क्षण ( present moment) के अनुभव को पूर्ण रूप से अपनाने में किस चीज़ से सहायता मिलती है ?
 

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