छेद वाली बाल्टी , ( the hole-y bucket)
द्वारा गोपाल दादा
एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा “ एक प्रश्न के उत्तर पाने की मैं काफी कोशिश कर रहा हूं -- मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?
ज्ञानी गुरु ने कहा” हम उस प्रश्न पे उचित समय पे आयेंगे| तब तक क्यों नहीं तुम इस ड्रम में , उस नीचे वाली घाटी के पास की नदी से, पानी लाकर भर देते हो | यह कह कर उन्होंने पानी लाने ले लिए एक बाल्टी दी जिसमे अनेक छेद थे और वह मिट्टी , गन्दगी एवं चिकनाई से लिपटी हुई थी |
उस परिश्रमी शिष्य ने वैसा ही किया| उसने पैदल, नीचे, उस घटी वाली नदी पे जा कर , अपनी छिद्रों वाली (hole-y) बाल्टी में पानी भर कर, ऊपर आकर, उस ड्रम में पानी भरना शुरू किया| गहन तल्लीनता से लीन होने के कारण वो बाल्टी के छिद्रों से पानी के रिसने को देख नहीं पाया |
दिन बीते , महीने बीते , पर वह उस ड्रम को पूरा भर नहीं पाया|
निराश और थका हुआ शिष्य फिर से गुरु के पास पहुंचा : “मैं इस बाल्टी से, इस ड्रम को कई महीनों से भरने का प्रयास कर रहा हूं, परन्तु यह ड्रम भरने के नजदीक भी नहीं है | ना जाने मेरे प्रश्न का उत्तर मुझे कब मिलेगा” |
दयालु ह्रदय से गुरु ने शिष्य का हाथ पकड़ा और उसे घाटी के रस्ते ले गया | यह वही रास्ता था जिससे वह शिष्य प्रतिदिन अपनी पानी भरने की असंभव प्रतिज्ञा के लिए जाता था | रास्ते की खूबसूरती दिखाते हुए गुरु कहते हैं “ कुछ महीने पूर्व यह बंजर ज़मीन थी| अभी देखो यह खिलता हुआ उद्यान है| प्रतिदिन जब तुम पानी लाते थे, तो शायद तुम्हे एहसास ना हुआ हो , तुम्हारी छेद भरी बाल्टी से, इस रास्ते पर पानी रिस रहा था | अभी तुम देख सकते हो इस जगह में फूलों एवं घास का बसंत खिला हुआ है| “
फिर उन्होंने उस बाल्टी को दिखाते हुए कहा” जब मैंने तुम्हे ये बाल्टी दी थी, तब यह मिट्टी से सनी , चिकनाई युक्त थी, और अंदर और बाहर दोनों से गन्दी थी| जितनी बार तुमने उसमे पानी उठाया , उतनी बार उसकी मिट्टी एवं चिकनाई धुलती चली गई|
बिना कुछ भी और समझाए, उस छात्र की समझ में आ गया | उसके मुख्य प्रश्न का उत्तर उसके ह्रदय से अपने आप निकल के आ गया “ मैं उस बाल्टी की तरह हूं जिसका ध्येय उस ड्रम को भरना है|मुझे शायद यह ज्ञात ना हो पा रहा हो कि मेरी अंदरूनी शुद्धि कैसे हो रही है या मैंने उन पौधों को अनजाने में पानी कैसे दिया है, पर किसी दिन एक दयावान व्यक्ति मुझे उस लहलहाते एवं खिले हुए उद्यान को देखने में मदद करेगा|मेरी समझ में आ जायेगा कि जीवन में प्रत्येक छेद का एक ईश्वरीय मायने होता है| तब, मैं बिना किसी फल की कामना के अपना कार्य करता चला जाऊँगा| मैं सिर्फ खुशी के लिए सेवा करता चला जाऊँगा|
मनन के लिए बीज प्रश्न: आप , इस छेदों से बहती हुई बाल्टी, वाली कहानी और उसका हमारे जीवन के मकसद से, क्या नाता देखते हैं ? क्या आप कोई कहानी साझा कर सकते हैं जहाँ आप को किसी ऐसे लहलहाते बगीचे का पता चला हो , जिसको आपने संयोगवश पानी से सींच दिया हो? बिना फल की कामना के कार्य करने में आपको किस चीज़ से मदद मिलती है |