हम सब बुनकर हैं
जों मदिं (jon madian ) द्वारा
हम सब बुनकर हैं,
और आदिकाल के
निरंतर नवीकृत धागे में
और धागे से ,
एक श्वास से भी सूक्ष्म ,
अदृश्य ,करघे
द्वारा, बुने गये हैं.
एक मोड़ पे,
हम खींचते हैं,
अपनी ही रचना में जोड़ने को,,
जीवन के सबसे महत्वपूर्ण
गीत गाने को,
मैं हूँ, सम्बद्ध हूं |
दूसरे मोड़ पे,
हम ज़ोर देते हैं,
उस प्रसंग की नक्काशी को
जो पिरामिड पे, मुख्य गिरिजाघर पे,
दूरदर्शक पे है और जिनका
अभिप्राय आशा और
संकल्प की पहेली को खोजना है |
हम सभी , यदि हमारा
जीवन सुखी है,
अपने आने वाले कुल के लिए ,
पर्याप्त धागा छोड़ देते हैं,
जिसका मूल , सितारों से
भी शुद्ध गणित से पहले का है,
ताकि वो किसी जीवित धागे
को उठा सकें |
और हड्डी और
अस्थि के वाहन पे,
आगे आने वाले बुनकर के लिए,
जो कल को उस कपडे को बुनेंगे, ,
एक ठोस आधार छोड़ देते हैं |
मनन के लिए बीज प्रश्न: हम इस बात से कैसे नाता रखते हैं कि हम बुनकर हैं, और एक धागे में और धागे से, एक आदिकाल के निरंतर नवीकृत वस्त्र से बुने गये हैं? क्या आप एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब आप आने वाले बुनकरों के लिए एक ठोस आधार छोड़ने के लिए जागरूक हुए? आपको अपने मिले हुए ठोस आधार के लिए कृतज्ञता और अगले कुल के लिए ठोस आधार छोड़ पाने के अवसर के लिए कृतज्ञता के लिए किस चीज़ से सहायता मिलती है?
Here is a poetic biography of Jon Madian.