आसमान का अँधेरा ही सितारे दिखाता है ,
बेयर गुएर्रा ( Bear Guerra) द्वारा
मेरे बचपन की यादों में एक है जब मैं एक पारिवारिक यात्रा के दौरान, मध्य रात्रि में, गहरी नींद से उठा हूं| शहरी प्रदीपन से दूर, मैंने खिड़की से बाहर झांक कर , पहली दफे, एक सितार्रों से भरा आसमान देखा| मुझे यह पूरी तरह ज्ञात नहीं है कि मैं स्वप्न देख रहा था अथवा नहीं, पर यह मुझे अच्छी तरह याद है कि उस वक़्त मुझे हमारे इस ब्रह्माण्ड की विशालता का एहसास हुआ था | मुझे अभी भी याद है विस्मय, भय एवं आशा के गहन मिश्रण का अनुभव और जब तक सितारे, सुबह के प्रकाश में खो नहीं गये, तब तक मैं उन्हें देखता रहा था |
मैं अब भी उस रात्रि और गहरे जुड़ाव के बारे मैं सोचता हूं जो मैंने अनुभव किये थे| हालाँकि इन वर्षों में उस याद ने एक रूपक संकेतार्थ भी ले लिया है, जो डॉ मार्टिनलूथर किंग जूनियर की, आशा के विषय में , प्रसिद्ध पंक्तियों की याद दिलाता है “ सिर्फ घोर अँधेरे में ही हमें सितारें नज़र आते हैं “ | आज यह असाधारण बात नहीं लगती, पढ़ कर, सुन कर एवं विश्वास कर, कि हम अन्धकार के समय में रह रहे है, इस विश्व की वर्तमान हालत ये ही है, और हमें विश्वास की जरूरत , असाधारण कठिनाइयों को देखते हुए, जैसे जलवायु परिवर्तन, असमानता , पृथक्करण, महामारी जैसी परिस्थितियां |
मैंने, भी, अपनी ज्यादा जिंदगी, यह तथ्य मान के बिताई है कि अँधेरा एक समस्या है जो उजाला खोजता है, शाब्दिक एवं प्रतीकात्मक मायने , दोनों में | पर शायद अंधरे का भय हमारी सामूहिक समस्या का ही हिस्सा है|
सामान्यतः हम सब अब एक ऐसे विश्व की निरंतर आभा मैं रहते हैं, जो कभी सोता नहीं है| जैसा कि एक निबंधकार एवं कवि मार्क त्रेद्द्निक ने कहा है “ शहरों में रात्रि को ख़त्म करने के कारखाने हैं” | जब हम वाणिज्य से प्रेरित होते हैं,जिसमें अँधेरा , उत्पादन एवं उपभोग की राह में एक रुकावट ही होता है ; हम अत्याधुनिक प्रद्योगिकी से ही एक प्रतीकात्मक रूप से एक दूसरे से जुड़ पाते हैं | हमें ज्यादा रौशनी की नहीं बल्कि ज्यादा अँधेरे की जरूरत है|
जिन अनगिनत तरीकों से हमने अपना सम्बन्ध प्राकृतिक दुनिया से तोड़ लिया है, उन सब में सब से गेहरा ये ही नुकसान होगा, जो हमें रात्रि के आसमान से दूर कर दे और अँधेरे से हमारा सम्बन्ध तोड़ दे|
हमारा अँधेरे एवं रात्रि के आसमान के सम्बन्ध से अलगाव , हमारे प्राकृतिक विश्व से अलगाव का प्रतीक है| हमें विश्व के कृत्रिम उजाले के अंधे अनुमोदन पर सवाल करना होगा ; अन्धकार से भय नहीं, उससे जुड़ना होगा, उससे विस्मित होना होगा और यह मानना होगा कि अगर हम धैर्य रखेंगे तो हम इस अँधेरे के बीच से देख पायेंगे| मैं जब उस प्रद्योगिकी के बारे में सोचता हूं और वो कैसे हम पर और हमारे करीबी लोगों पे असर कर रही है, मैं सोचता हूं कैसे मैं अपने बच्चे को अँधेरे को आलिंगन के लिए प्रेरित कर सकता हूं और उसे समझा सकता हूं बिना अँधेरे के हम सिर्फ अपूर्ण ही नहीं हैं, बल्कि हमारे स्वप्न भी ख़त्म हो जाते हैं|
मुझे मार्टिन लूथर किंग की आवाज़ याद आ जाती है, , जो एक प्रसिद्ध स्वप्न कारक थे और जिन्होंने उस अँधेरे के मध्य से ही सितारों को देखा था|
मनन के लिए बीज प्रश्न : हम इस बात से कैसे नाता रखते हैं कि, “ अँधेरे के अभाव में , हम सिर्फ अपूर्ण ही नहीं होते , बल्कि हम स्वप्न भी नहीं देख पाते ? क्या आप अपनी कोई ऐसी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अँधेरे को गले लगाया हो और उसके फलस्वरूप आप सितारों को देख पाए ? आपको रात्रि को गले लगाने के लिए किस चीज़ से सहायता मिलती है?