परम मनन द्वारा कित्ती सारो
हमें लगता है कि हम किसी चीज़ का अभिग्रहण चिंतन से कर सकते हैं| वास्तविकता यह है कि हम विचारों को पकड़ने की कोशिश करते हैं, और जीवन को पकड़ के रखने का प्रयास ही इन्हें दूर करते चला जाता है| हम विचारों को रोक नहीं सकते हैं, और वे गोल गोल घूमते रहते हैं|
चेतन और जागृत विचारों की परिवर्तनीय शक्ति ही विचारों की नश्वरता उजागर करती है| उदाहरनार्थ, यह विचार कि “ विचार कौन कर रहा है ? ” एक वर्त्तमान क्षण से जुड़ने का निमंत्रण है| विचारों की प्रक्रिया इसी तरीके से सामने आती है| जब हम विचारों के वशीभूत नहीं होते , तो कुछ अन्य, साधारण, चीज़ें हमारी निगाह में आती हैं| हमें नज़र आता है की समस्त विचार , एक मौन श्रवण में ही स्पष्ट होते है और उसी में लुप्त हो जाते हैं| यह एक बड़ी राहत है| हमें अपने विचारों के अनुरूप ढलने की आवश्यकता नहीं है| हम उनके बंधन से छूट सकते हैं| विचारों को “सिर्फ विचार “ की तहर देखने से , ह्रदय कि गहराई, बिना किसी निशान के , देखने को मिलती है| “ आपको वहां संत नज़र नहीं आयेंगे”| जहाँ विवेक है, प्रज्ञा है, वहां पे खुशी की “ किसी बाहरी वास्तु में” , एक अंतहीन खोज , ख़त्म हो जाती है| हमारे पास जाने को कहाँ है? अच्छे विचार एवं गंदे विचार , सभी चेतन शक्ति में उभरते हैं और उसी में लुप्त होते रहते हैं, फिर भी चेतन शक्ति पे इनका कोई असर नहीं होता|
जागरूकता का अर्थ है, एक मूलभूत बदलाव का होना | ये अपने आपको, अन्य हजारों चीज़ों में देखने के बजाए, यह मानने का बदलाव है कि हमारा सत्य स्वरुप , व्याख्या से परे है| इस परिवर्तन की समझ , प्रज्ञा एवं विवेक की ही देन है, और ह्रदय की एक अभिन्न गुणवत्ता है, जो हमें दुखों के अथाह समुन्दर से गुजरते हुए , सुख रुपी किनारे में पहुँचने में मदद करती है| भगवान् बुध ने इस मुक्त करने वाली क्रिया को “ Yoniso Manasikara” कहा है| इसका अधिकतर अनुवाद “ बुद्धिपूर्वक चिंतन “ है| “Yoni “ का अर्थ है गर्भ , और “Manas “ का अभिप्राय है बुद्धि |पूरे वाक्य को देखें तो उसका मायने इस प्रकार निकाल सकते हैं “ दिमाग एवं उसकी गतिविधियों को जागरूकता के गर्भ में उतारना “ | बौधिक चिंतन, विश्व की उपरी अनुभूति पे नहीं रुक जाता , बल्कि जागरूकता की गहराइयों पे उतर कर, अडिग , जमीनी ज्ञान के बोध को अपनाता है, जिसके अंदर जीवन के सारे प्रत्यक्ष भेद मौजूद हैं| मेरे को इस महतवपूर्ण कहावत का हिदी अनुवाद “ परम मनन ” , पसंद है, क्योंक इसमें सभी घटनाओं के अपने मुख्य सूत्र से जुड़ाव का आभास है, जागरूकता की कोख का अनुभव है , जो सभी अनुभवों को महसूस कराती है|
परम शब्द का प्रारंभिक जुद्दाव जड़ों से है| परम मनन जड़ों का चिंतन करता है, सूत्र का , उस स्थान का, जहाँ सभी चीज़ें विलीन होती हैं|
मनन के लिए बीज प्रश्न: परम मनन आपके लिए क्या मायने रखता है ? क्या आप ऐसे अनुभव का साझा कर सकते हैं, जब आप ऐसे अडिग ,जमीनी ज्ञान के बोध से जुड़े हों, जहाँ पे समस्त जीवन के प्रत्यक्ष भेद मिलते हों? जागरूकता के गर्भ में आपको अपना दिमाग एवं उसकी गतिविधियों को उतारने में किस चीज़ से सहायता मिलतीहै|