अनिश्चितता का ज्ञान , द्वारा जैक कोर्नफील्ड
एक दिन, अजंह चाह , ने एक खूबसूरत चीनी चाय का कप रखा और कहा “ मेरे लिए ये कप टूट चूका है, चूँकि मुझे इसका भविष्य पता है, मैं इसका पूरी तरह आनंद ले सकता हूं, और जब ये चला जायेगा तो चला जायेगा| जब हम अनिश्चितता
का सत्य समझ कर शांत हो जाते हैं तो आजाद हो जाते हैं|
ये टूटा कप हमें नियंत्रण कि भ्रान्ति से परे देखने में मदद करता है| जब भी हम एक बच्चे के पालने का मन बनाते हैं, व्यापर बनाने का मन बनाते हैं, किसी कला को बनाते हैं, या किसी अन्याय को न्यायगत बनाने को कोशिश करते हैं, , तो जाहिर है हमें कुछ सफलता एवं कुछ असफलता मिलेगी | ये एक उग्र शिक्षा है| मार्गरेट एक सामाजिक सहायता कर्मचारी थी जिनका क्लिनिक कोसोवो में पूरी तरह जल गया, फिर भी उन्होंने दोबारा शुरुआत की | उन्हें पता है कि उनका कार्य लोगों की मदद करता है, कामयाबी या नाकामयाबी में भी| एमिली, जिनका सबसे होनहार गणित विद्यार्थी एक गिरोह की गोलीबारी में मारा गया, बहुत दुखी थी| पर उन्हें उसको पढ़ाने का अफ़सोस कभी नहीं रहा और अब वो उसके सम्मान में कई और बच्चों को पढ़ाती है|
हो सकता है हमारे उत्तम मिट्टी के पात्र अग्नि में जल जायें, जिस स्कूल को हमने इतनी मेहनत से बनाया, बंद हो जाए, हमारा व्यापर बंद हो जाए या हमारे बच्चे ऐसी समस्या खड़ी कर लें जो हमारे नियंत्रण से बाहर हो| अगर हमने नतीजों पे ध्यान केन्द्रित कर रखा है तो हम उजड़ जायेंगे| पर अगर हमें पता है कि कप टूटा हुआ है, तो हम प्रयास को प्राथमिकता देंगे, जो बना सकते हैं बनायेंगे और जीवन के वृहद् प्रणाली पे विश्वास रखेंगे| हम नक्शा बना सकते हैं, सेवा कर सकते हैं, ध्यान दे सकते हैं, और प्रतिक्रिया दे सकते हैं| हम नियंत्रित नहीं कर सकते | इसके बजाए हम लम्बी सांस लें, और जहाँ हैं और जो प्रकट हो रहा है उसे अपनाएं | यह एक बड़ा बदलाव है, पकड़े रखने से लेकर, छोड देने तक का है| जैसा की सुजुकी रोशी कहते हैं, “जब हमें अनिश्चाता के सत्य का पता चलता है, और हम उसी में अपना समस्त देखते हैं, तो हम अपने आपको को निर्वाण रूप में पाते हैं|”
जब भी लोग अजंह चाह से आत्मज्ञान के प्रश्न पूछते या पूछते कि मृत्यु के बाद क्या होता है, या ध्यान की प्रक्रिया क्या उनकी बीमारी दूर कर देगी, या बौद्ध शिक्षाओं को पश्चिमी लोगों द्वारा समान रूप से अभ्यास किया जा सकता है, वे मुस्कुरा कर कहते “ये अनिश्चित है, है ना?” चोग्यम त्रुम्पा इस अनिश्चितता को आधारहीनता कहते हैं | इस अनिश्चितता के ज्ञान से अजंह चाह विश्राम कर सकते थे| उनके आस पास एक विस्तृत सहजता थी| वो अपना साँस नहीं रोकते थे और ना ही किसी घटना को प्रभावित करते थे|वो सिर्फ उस वक़्त की घटना पे ही प्रतिक्रिया करते थे | जब एक वरिष्ट पश्चिमी नन (साधुनी), ने बौध सम्प्रदाय छोड़ कर क्रिस्चियन मिशनरी बन जाने के पश्चात, वापस आ कर अपने बौध मित्रों का भी वापस धर्म परिवर्तन करना चाहा, तो कई लोग नाराज़ हुए, उन्होंने कहा , “ये ऐसा कैसे कर सकती है?” असमंजस की स्थिति में उन्होंने अजहं चाह से उसके बारे में पुछा| अजंह चाह ने हंस कर कहा, हो सकता है वो सही हो| ये सुन के सभी निश्चिंत हुए| जरूरत पड़ने पर अजंह चाह किसी बड़े मंदिर का निर्माण की रूप रेखा बना सकते थे, या अपने शिष्यों द्वारा चलाई हुई तक़रीबन सौ मठों का कार्यभार देख सकते थे| जब वो अभद्र व्यवहार वाले भिक्षु को नियम बध्धता सिखा रहे होते थे तो वो निर्णायक, सख्त एवं रौब ज़माने वाले भी हो सकते थे| इन सभी कार्यों में एक फैलाव होता था, और ऐसा लगता था कि वो एक मिनट बाद ही मुस्करा कर, आंख झपकाते हुए कहेंगे, “ये अनिश्चित है, है ना?” वो भागवत गीता में वर्णित जीने की कला के जीते जागते सबूत थे, जो कहती है : “हमारे अच्छे कार्य फल के प्रति आसक्ति से मुक्त होने चाहिये|”
अजहं चाह द्वारा अभिव्यक्त विश्वास सामने आता है जब भी हमारा चेतन इस अनंत वर्त्तमान पे टिका होता है| जहाँ मैं बैठा हूं, वहां से ना कोई जाता है, तो ना कोई आता है| इस मध्यम मार्ग है , ना कोई तगड़ा है ना कोई कमजोर है, ना कोई जवान है ना कोई बूढ़ा है, ना कोई जन्म लेता है, ना कोई मरता है| यही एक निरुपधि है| ह्रदय मुक्त है | प्राचीन जेन गुरु इस ज्ञानोदिप्ती को “एक विश्वासी मन” कहते हैं| जेन साहित्य इसे कैसे करना है बतलाता है. “विश्वासी मन में रहने का तात्पर्य है, निपुणता के प्रति बेचैनी का अभाव | पूरा संसार त्रुटिपूर्ण है | बजाए इसके की संसार को हम सुधारें, हम आराम से इस अनिश्चितता में वास करते हैं| हम करुणा सहित, अपना उत्तम कार्य कर सकते हैं| कार्य फल की आसक्ति के बिना, हम किसी भी परिस्थिति का सामना अभय और विश्वास के साथ कर सकते हैं|
मनन के लिए बीज प्रश्न: “अनिश्चितता का ज्ञान” आपके लिए क्या मायने रखता है? क्या आप एक ऐसी निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब आपने इस अनिश्चितता के ज्ञान का सहारा लिया हो और आपने परिपूर्णता के आभाव को अपनाया हो? “विश्वासी मन” के साथ रहने में आपको क्या मदद करता है?