Does The Mind Exist During Our Sleep?

Author
Annamalai Swami
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Image of the Weekक्या हमारा मन सुप्त अवस्था में भी अस्तित्व में होता है ? अन्नामलाई स्वामी
जब भी हम सुप्त अवस्था होते हैं , हमें मन से रहित होने का अनुभव होता है| आप यह इंकार नहीं कर सकते कि जब आप सुप्त अवस्था में हैं तो अस्तित्व में ही होते हैं, और यह भी इंकार नहीं कर सकते कि जब आप स्वप्न रहित नींद मैं होते है तब आपका चित्त काम नहीं कर रहा होता है | यह दैनिक अनुभव हमें बताता है कि हम बिना चित्त के भी अस्तित्व में रह सकते हैं| यह सत्य है कि जब आप सुप्त अवस्था में होते हैं तो आपको पूर्ण चेतना का अनुभव नहीं होता , पर अगर आप सुप्त अवथा में अपनी अवस्था पे विचार करें तो आपकी समझ में आएगा की आपका अस्तित्व , आपके जीवन की निरंतरता आपके मन पर निर्भर नहीं है, और नाही आपके अपने मन के साथ एकाकीकरण पर ही निर्भर है| प्रत्येक सुबह जब आपका मन दोबारा दीखता है, तो आप तुरंत इस नतीजे पे पहुंचते हैं की “यह ही वास्ताविक मैं हूं

आप इस कथन पे विचार करें तो लगता है ये कितना असंगत है| अगर आप तभी अस्तित्व में हैं जब आपका मन विद्यमान है, तो आपको मानना होगा की जब आप सुप्त अवस्था में थे तो आपका अस्तित्व ही नहीं था| कोई भी इस असंगत बात को नहीं मानेगा| अगर आप अपनी जागृत और सुप्त अवस्था पे विचार करें तो आप पायेंगे की आप दोनों ही अवस्थाओं में अस्तित्व में हैं| आप पायेंगे की आपका मन सिर्फ जागृत अवस्था या स्वप्न वाली सुप्त अवस्था में ही काम कर रहा होता है|

इन सामान्य दैनिक अनुभव से हमें समझ में आता है की हमारा मन एक ऐसी अवस्था है जो आती जाती रहती है| जब भी हमारा मन काम नहीं कर रहा होता , हमारा अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता |मैं आपको कोई गहन दार्शनिक विद्या नहीं बता रहा हूं| ये वो है जिसे आप अपनी नित्य की २४ घन्टे की दिनचर्या में स्वयं अनुभव कर सकते हैं|

आप उस तथ्य को माने जिसे आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं और उस पर गहन विचार करें| जब मन सवेरे प्रगट हो तो नित्य की भांति आप इस नतीजे पे ना पहुंचे की “ ये मैं हूं, ये विचार मेरे हैं” |इसके बजाय विचार आने और जाने दें पर उनके साथ किसी भी तरह की अपनी पहचान ना बना लें| अगर आप इस प्रत्येक विचार को अपनाने की प्रवृर्ति पर काबू पा लेते हैं, तो आप एक अचंभित करने वाले नतीजे पे पहुंचेंगे की आप स्वयं वो चेतना हैं जिसपे विचार आते और जाते रहते हैं| आप पायेंगे की यह जो मन है वो तभी तक अस्तित्व में है जब तक आप विचारों को स्वछंद रूप से आने जाने देते हैं| जैसे की एक सर्प भी एक रस्सी जैसा दीखता है, आप पायेंगे की आपका मन सिर्फ एक मिथ्या है, जो अज्ञानता एवं गलत धारणा से हाज़िर होता है|

रमण महर्षि एक कहानी साझा करते थे जिसमे एक व्यक्ति अपने प्रतिबिम्ब को गड्ढे में दफनाना चाहता था| उसने एक गड्ढा खोदा और वो ऐसे खड़ा हुआ जिससे उसका प्रतिबिम्ब उस गड्ढे के नीचे आ गया| वो व्यक्ति उस प्रतिम्ब को मिट्टी से ढकने लग गया | जब भी वो उस गड्ढे में मिट्टी डालता था , उसका प्रतिबिम्ब उसके ऊपर आ जाता था | वो कभी भी अपने प्रतिबिम्ब को दफना नहीं पाया| बहुत से व्यक्ति जब ध्यान करते हैं तो ऐसे ही करते हैं| वो मन को असली मानते हैं औए उस से लड़ते हैं, उसे ख़त्म करने की कोशिश करते हैं और हर बार असफल होते हैं| यह मन के साथ की लड़ाई मानसिक गतिविधियाँ हैं, जो मन को मजबूत करती हैं, उसे शिथिल करने के बजाय | अगर आपने मन से ऊपर उठाना है तो तो आपको सिर्फ ये समझाना है की “ये मैं नहीं हूँ “|

आसमान पे बदल आते और जाते रहते हैं, इससे आसमान को कोई असर नहीं पड़ता | आपका सही स्वरूप आसमान जैसा है, अंतरिक्ष जैसा है| आसमान जैसे ही रहें और बादल रुपी विचार आने जाने दें| अगर आप मन के प्रति विरक्ति की प्रवृति को विकसित कर लेते हैं, तो आप धीरे धीरे आप अपने सूक्ष्म अहम् से नाता तोड़ कर अपने शुद्ध स्वरुप में जागृत हो जायेंगे|

मनन के लिए प्रश्न : इस बात से आप कैसे साझा होते हैं की मन से लड़ने में, आप मन को मजबूत करते है, उसे शिथिल करने के बजाय ? क्या आप किसी ऐसे अनुभव को बाँट सकते हैं जब आपने ये समझा हो कि आप एक चेतना हैं जिसमे विचार आते और जाते रहते है ? मन के प्रति विरक्ति की प्रवृति रखने में आपको किस चीज़ से सहायता मिलती है?
 

Annamalai Swami was a direct disciple of Ramana Maharshi. Excerpt above from these talks.


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