चार प्रकार के सुनने की कला :
द्वारा ओटो शामेर
मैंने कई वर्षों में, समूहों एवं संगठनों के साथ काम करके, चार मूल प्रकार के सुनने की कला को जाना है|
“हाँ ये मेरे को पहले से पता है” | ये पहले प्रकार का सुनना प्रमाणीकरण ( downloading) है: सिर्फ आदतन धारणा की पुष्टि करना| जब आप उस स्थिति में हो, जब जो भी होता है वह आप के ज्ञान की ही पुष्टि करता है, तब आप प्रमाणीकरण में सुनते हैं|
“ वाह,उसको देखो” | यह दूसरे प्रकार का सुनना है जो विषय केन्द्रित सुनना है, यानि वह सुनना जिसमे हम ध्यान, वास्तविकता को एवं नवीन या अपुष्ट विवरण को देते हैं| इस प्रकार के सुनने में आप सिर्फ उसे सुनते हैं जो आपके अपने ज्ञान से भिन्न है| बजाए इसके के आप उस सोच को अपनाएं जो आपके सोच से मेल खाती है, आप उस वास्तविकता पे ध्यान देते हैं जो आपकी अपनी सोच से अलग है | विषय केन्द्रित या वास्तविक सुनना एक अच्छे विज्ञानं का साधन है| आप सवाल पूछते हैं और फिर ध्यान से विवरण का निरिक्षण करते हैं
“हाँ मुझे पता है आप कैसा महसूस कर रहे हैं”|ये तीसरे प्रकार के सुनने एक गहन सुनने की कला है, जो समवेदना पूर्वक सुनना है| जब हम एक सच्चे वार्तालाप मे होते हैं, और उसमे अगर पूरा ध्यान दे रहे होते है, ऐसी जगह पर हम उस गहरे बदलाव से अवगत होते हैं , जहाँ से हमारा सुनना उत्पन्न हो रहा है| जब भी हम पहले दो प्रकार के सुनने में होते हैं, हमर सुनना हमारी मानसिक संज्ञानात्मक रचना के ही अधीन होता है| पर जब हम समवेदना पूर्वक सुनते हैं, हमारी अनुभूति हमारी खुद की रचना से बाहर निकल कर , सामने वाले पे, उस जगह पे पहुंचती है जहाँ से सामने वाला बोल राहा है| जब हम उस प्रकार के सुनने पे पहुंचते हैं, हमें अपनी समवेदना को जगाना पड़ता है, जिससे हम सामने वाले से सीधा जुड़ते हैं, ह्रदय से ह्रदय| जब ऐसा होता है, हम एक गहन बदलाव महसूस करते हैं, हम अपना कार्यक्रम भूल कर सामने वाले की नज़रों से दुनिया देखने लग जाते हैं |
जब हम इस प्रकार से सुनते हैं, तब सामने वाले के भाव महसूस करने लगते हैं उनके शब्द के रूप लेने से पहले हम यह भी पहचान करने लगते हैं कि सामने वाले ने कुछ बताने के लिए, सही शब्दों का प्रयोग किया है या गलत शब्दों का प्रयोग किया है | यह निर्णय तभी संभव है, जब हम उसकी भावनाओं से सीधे जुड़े हैं और हम समझ सकते हैं वो क्या कहना चाह रहा है , उसके वास्तविक कहने को विश्लेषण करने से पहले | संवेदना पूर्वक सुनना एक कला है, जो विकसित की जा सकती है और सुधारी जा सकती है, किसी अन्य मानवीय रिश्तों की तरह | यह एक ऐसी कला है जो एक अन्य प्रकार के ज्ञान को जागृत करती है, यानि ह्रदय का ज्ञान|
“मैं ये बयां नहीं कर सकता जो मुझे शब्दों से अनुभव हुआ है| मेरा पूरा अस्तित्व धीमा हो गया है| मैं शांति महसूस कर रहा हूं, इस पल में मौजूद हूं और अपना सही स्वयं हूं| मैं अपने से भी ऊपर किसी अवस्था से जुड़ गया हूं “| ये चौथे पायदान की सुनने की कला है| यह वर्त्तमान दायरे से ऊपर उठ कर, एक उससे भी ऊपर एक गहन आविर्भाव से जुड़ता है| मैं ऐसे सुनने को उत्पादक सुनना कहता हूं, या एक ऐसा सुनना जो आने वाले भविष्यक छेत्र से उत्पन्न हो रहा है| इस प्रकार के सुनने के लिए आवशयक है कि हम अपने खुले दिल को अपनाएं, अपने खुले संकल्प को अपनाएं, और एक शक्ति विकसित करें जो हमें भविष्य की संभावित संभावनाओं से जोड़ने के लिए उत्सुक है | इस स्थान पे हमारा ध्यान केन्द्रित होता है, अपने पुराने स्वयं को हटाने में, ताकि हम एक नए स्थान को खोल सकें, एक ऐसी जगह जो एक भिन्न प्रकार की उपस्थिति को प्रकट कराता है| हम कुछ भी बाहर खोजना बंद कर देते हैं| हम सामने वाले पे समवेदना जाहिर करना बंद कर देते हैं| हम एक बदली हुई स्थिति में पहुँच जाते हैं, शायद समन्वय या इश्वरी प्रभाव इस स्थिति के अनुभव का का सबसे निकटतम शब्द है, और यह स्थिति शब्दों में बयां करनी मुश्किल है|
आप देखेंगे कि यह चौथी वाली सुनने की कला , बाकि सब सुनने की कलाओं से रचना एवं परिणाम में भिन्न है | आप को उस वक़्त यह महसूस होगा की आप चौथी कला में हैं जब आप किसी भी वार्तालाप समाप्त होने के बाद अपने आप को वो इंसान नहीं पायेंगे जो आप वार्तालाप शुरू करने से पहले थे| आप में एक सूक्ष्म, किन्तु प्रगाढ़ बदलाव आ जायेगा| आप ने एक गहरे स्त्रोत से सम्बन्ध स्थापित किया है – उस स्त्रोत से जो आप वास्तव में हैं, और यह भी कि आप यहाँ पर किस मकसद से हैं, वह सम्बन्ध जो एक विशाल छेत्र में है जहाँ आप अपने असली अस्तित्व को अपने उभरते हुए वास्तविक अस्तित्व से जुड़ा पाते हैं|
ध्यान के लिए बीज प्रश्न: इन चार प्रकार के सुनने की कला को आप कैसे अपने से जुड़ा मानते हैं? क्या आप ऐसा निजी वाकया साझा कर सकते हैं जब आपने कुछ उत्पन्न करने वाले सुनने को प्रेरित किया हो? आपके सुनने के स्तर को जान बूझ कर चुनने में क्या चीज़ से मदद मिलती है?