स्वतन्त्रता की ओर झुकाव, खामियों के साथ भी, द्वारा लार्री यंग
अगर हम ध्यान सिर्फ जागृति पर ही केंद्रित करेंगे तो हम अध्यात्मिक अभ्यास का ज्यादा हिस्सा खो देंगे। मैं जागृत नहीं होने पे, प्रबुद्ध नहीं होने पे , ही ज्यादा ध्यान देता हूँ क्योंकि यह अवस्थाएं हमारे जीवन में ज्यादातर नहीं हैं।
इन दिनों जब मैं विविधता एवं नस्लवाद विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देने का प्रयास करता हूँ , धम्म समुदाय के अंदर और बाहर , मेरे को अपनी क्षमता में निराशा एवं मायूसी की नई गहराई दिखती है, मेरे समुदाय के दोष दीखते हैं, और यह दीखता है की कितना हमारी वृहद् संस्कृति को नुकसान पहुंच रहा है। हम प्रबुद्ध संसार में नहीं रहते , क्या आपने देखा है ? एक धम्म गुरु की हैसियत से मेरे को शिक्षा मिली थी कि मैं उस अंतर्दृष्टि एवं दयालुता को पढ़ाऊँ जो मैंने महसूस किया है। परन्तु इन दिनों मेरे को लगता है की मैं जहाँ पे हूँ वहीँ से पढ़ाऊँ , हर क्षण में वास्तविक एवं विश्वसनीय बनूँ ,उस स्थान से भी, जहाँ पे मेरे पास उत्तर नहीं है,और उस जगह से भी जहाँ पे मेरी कमियों का परिसीमन है।
हमें अपने अभ्यास को और गहरा करना होगा ताकि हम निराशा और मायूसी की चरमता को पार कर सकें। हमें इन सब के नीचे की आवाज़ को सुनना होगा , किस जगह से हमें स्वतंत्रता बुला रही है सुनना होगा, यह पूछना होगा कि क्या मैं इसके लिए तैयार हूँ? क्या मैं इस की तरफ मुड़ सकता हूँ? या हम एक अपर्याप्त भाषा जिसमे हम संवाद करते हैं , पूछ सकते हैं , की क्या मैं इससे भी प्यार कर सकता हूँ?क्या हम इस जीवन की निराशा एवं खामियों की ओर उसी भाव से बढ़ सकते हैं जिससे हम जागरूकता वाली चीज़ों की ओर बढ़ते हैं | क्या हम मौजूदगी में रह सकते हैं जब जीवन भी असम्भव प्रतीत होता हो
यह सहज ज्ञान के विपरीत लग सकता है पर जब भी हम जागरूकता का अभ्यास करते हैं एवं अपने ही टूटे , अधपके, स्वरुप की ओर दया भाव रखते हैं,ये हमारी सचेतन अवस्था को बढ़ाता है | हमें जागृति या गैर जागृत से जुड़ना नहीं है,क्योंकि दोनों ही अवस्थाएं एक अनुभव हैं जिसे हम एक कोमल जागरूकता में थाम सकते हैं।
जागृति एवं गैर जागृति , एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। दोनों एक जैसे ही अनुभव हैं। हम जाग्रति का अनुभव, गैर जाग्रति के अनुभव को किये बिना, नहीं कर सकते। हम अंतर्दृष्टि का अनुभव, अपने सुविधाजनक प्रतिमान से आंतरिक सम्बन्ध स्थापित किये बिना अनुभव नहीं कर सकते।
अतः, मैं अपनी खामियों मैं रह कर भी , विफलताओं के साथ भी, अपने ह्रदय को स्वतंत्रता की ओर ले जा सकता हूँ। इसमें ही मैं जागृति और गैर जागृति के पथ को आपस में समन्वय करते देखता हूँ। यह पीड़ा के मध्य की स्वतंत्रता है। यह एक हिंसा एवं अत्याचार के बावजूद का लचीलापन है। हम सुन्दर जीवन को बना सकते हैं जहाँ पे संसार अभी जागरूक भी नहीं हुआ है।
.जब ही हम दयालुता एवं जागरूकता का प्रयास करते हैं, हम अपने निजी जीवन को ही नहीं पूरे जीवन को बदल देते हैं। हम उसे थाम सकते हैं जो थामने के असमर्थ है, किसी टूटे दिल को भयंकर मस्तिष्क से जोड़ सकते हैं। हम उस कड़वे क्रोध में अमूल्य बुद्धिमता को खोजने लग जाते हैं , और जैसे ही हम खोजने लगते हैं हम उस कड़वे क्रोध से प्रभावित होना बंद कर देते हैं। हम निराशा के सीधे अनुभव को देखते हैं और उसी में प्यार, देखभाल, और शायद स्वतंत्रता को बुन देते हैं। यह हमारे आध्यात्मिक अभ्यास का परिमाण है। यह हमें जाग्रति एवं गैर जागृति के विरोधाभास एवं मिथ्याभास और उनके बीच की हर चीज़ को शामिल करने को कहता है। और यही है मध्य स्थिति, चरम से सूक्ष्म तक की स्थिति,वर्णक्रम जो विपरीत ताकतों को जोड़ता है, जो हमारे पूरे जीवन की पूर्णता दर्शाता है, हमारा अभ्यास, और हमारी स्वतंत्रता।
ध्यान के लिए बीज प्रश्न : अपने हृदय को , कष्ट के बावजूद, स्वतंत्रता की ओर झुकाना आपके लिए क्या मायने रखता है। क्या आप ऐसी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपने अंतर्दृष्टि का अनुभव , अपने सुविधाजनक प्रतिमान से आंतरिक सम्बन्ध बना के किया हो ? आपको जागृति एवं गैर जाग्रति, एक ही सिक्के के दो पहलु हैं , मानने में क्या मदद करता है?