आप किस बात पे विश्वास कर सकते हैं,
द्वारा डौग पावर्स
युवाओं के मन में अभी यह मुख्य विचार चल रहा है कि अपने अनुभव की किस बात पे वे विश्वास कर सकते हैं।
पचास एवं साठ के दशक में हमें विचारधाराओं , धर्मों , विश्वविद्यालयों एवं अर्थशास्त्रियों पर विश्वास था। विभिन्न छेत्रों में कई स्तरों की विशेषज्ञता उपलब्ध थी। व्यक्तित्यों को भरोसा था कि उनके पास साख है, और वे अपनी समझ से सबसे उत्तम तरीके से आधुनिक समाज एवं संस्कृति के जटिल तंत्रों को समझने का प्रयास कर रहे थे।
अभी उन व्यक्तियों से पूरा विश्वास उठ चूका है, और समझ में नहीं आ रहा की किधर देखें। साठ एवं सत्तर के दशकों में, हम जब भी अधिकारीयों के खिलाफ विद्रोह करते थे, हमारे पास विद्रोह के लिए अधिकारी होते थे,एक पहचान भी थी, हम आधे वो पहचान थे और आधे विद्रोही। किसी चीज़ का ढांचा भी था। अभी हमें देखने के लिए न कोई विश्वसनीय ढांचा है न विश्वसनीय अधिकारी। इरादे साफ़ नहीं हैं। हम अब यह सामान्यतः मानने को तैयार नहीं है कि लोगों में कोई साख है, उनमे साख हो सकती है परन्तु उनके शायद अन्य इरादे भी होंगे।
सबसे बड़ी समस्या है की किसकी ओर देखें ? यद्यपि यह प्रश्न शुरू अधिकारियों से होता है, पर आगे यह हमारे एक दूसरे के रिश्तों के प्रश्न पर चला जाता है, क्या हम रिश्तों मैं एक दुसरे पर विश्वास कर सकते हैं ? फिर हम ऐसी जगह पहुँच जाते हैं जहाँ हमें खुद पे भी विश्वास नहीं होता। तब हम ऐसी स्थिति मैं पहुंचते जाते हैं जहां हम एक ही चीज़ पे विश्वास करते हैं और वो है उस लम्हे का उत्पन्न भाव। मुझे नहीं लगता हम उस पे भी विश्वास कर सकते हैं क्योंकि वो भी स्थाई प्रतीत नहीं होता है। अब यह मौलिक प्रश्न उठता है कि हम कहाँ देखें , जहाँ पर अपने विचारों एवं कार्यों की जाँच एवं निर्धारण कर सकें और यह तय कर सकें की हम कौन से माप दंड अपनाएं जहाँ अपने विचार एवं कार्यों एवं अपने जीवन का मूल्यांकन उस तरीके से कर सकें जिस पे हमें पूरा विश्वास है।
ध्यान के बीज प्रश्न :कौन सा आधार है जो हमें यह जानने में मदद करता है की हम क्या कार्य करें? क्या आप ऐसी कहानी साझा कर सकते हैं जब दीर्घ एवं पुराने संस्थानों से आपका विश्वास उठ गया और आपको अपना आधार खुद खोजना पड़ा? क्या ऐसा मार्गदर्शक है , जो स्थाई भी है, जिसकी आप सहायता लेते हैं?
Doug Powers is teacher, scholar and a seeker. Excerpt above is taken from this article.