अपनी हथेली खोलना
- रबींद्रनाथ टैगोर (२४ जुलाई, २०१९)
मैं गाँव के रास्ते में घर-घर जाकर भीख माँगने निकला था जब आपका सुनहरा रथ एक भव्य सपने की तरह दिखाई दिया और मैंने सोचा कि यह राजाओं का राजा कौन है?
मेरी आशाएँ बढ़ गईं और मुझे ऐसा लगा कि मेरे बुरे [भूख के] के दिनों की समाप्ति होने को आई, और मैं बिना माँगी भिक्षा और धूल में हर तरफ बिखरे धन के इंतजार में खड़ा हो गया।
जहाँ मैं जहाँ खड़ा था वहाँ रथ रुक गया। आपकी नज़र मुझ पर पड़ी और आप एक मुस्कान के साथ नीचे उतर आए। मुझे लगा कि मेरे जीवन का भाग्य आखिरकार जाग उठा । फिर अचानक आपने अपना दाहिना हाथ आगे बढ़ाया और कहा "मुझे देने के लिए तुम्हारे पास क्या है?"
आह, ये कैसा राजसी मज़ाक़ है कि आपने अपना हाथ एक भिखारी के आगे भीख माँगने के लिए फैला दिया। मैं उलझन में था और अनिर्णीत खड़ा था और फिर अपने बटुए से मैंने धीरे-धीरे मकई के कुछ दाने निकाले और आपको दे दिये।
लेकिन मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने दिन के अंत में अपने झोले को ज़मीन पर खाली किया और उस छोटे से ढेर में मैंने सोने का एक छोटा सा कण देखा।मैं फूट-फूट कर रोया और मैंने सोचा कि काश मेरे पास आपको अपना सब कुछ दे देने का दिल होता।
प्रतिबिंब के लिए मूल प्रश्न: वह कौन सा सोना है जिसे आप उपहार देने से बढाते हैं? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आप अभाव से बहुतायत में स्थानांतरित होने में सक्षम हो सके हों? आपको बहुतायत में गहराई से जाने में किस चीज़ से मदद मिलती है?
रवींद्रनाथ टैगोर 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे।
Rabindranath Tagore was the first non-European to win the Nobel Prize for Literature in 1913.