मेरे दादा द्वारा एक असामान्य उपहार |
राचेल नाओमी रेमन द्वारा
प्रायः हर समय , जब भी मेरे दादा मुझसे मिलने आते थे , तो मेरे लिए एक उपहार लाते थे|ये उपहार ऐसे नहीं थे , जैसे की सामान्यतः लोग लाते हैं जैसे गुड़िया, पुस्तकें या खिलौने| मेरी गुड़िया एवं खिलौने तो लगभग पचास वर्षो से मेरे पास नहीं हैं, परन्तु मेरे दादा के लाये हुए कुछ उपहार अभी भी मेरे पास हैं|
एक बार वो मेरे लिए एक पेपर का कप लाये | मैंने उत्सुकता पूर्वक उसकी खासियत देखने हेतु उसके अंदर देखा| वो मिट्टी से भरा था| मुझे मिट्टी से खेलने की मनाही थी| मायूसी से ये बात मैंने उन्हें भी बताई| वो मेरे तरफ मुझ पर प्यार से मुस्कुराये| उन्होंने मेरी गुड़िया के खिलौनों में से चाय बनाने वाली केतली उठाई और मुझे रसोईघर ले गये और वहां उस केतली में पानी भर दिया| बाहर आ कर उन्होंने उस पेपर कप को हमारी नर्सरी की खिड़की के पास रख दिया और मझे चाय वाली केतली दे कर कहा” अगर तुम इस कप में प्रत्येक दिन पानी डालने का वादा करो , तो कुछ विशेष होगा” |
मैं उस वक़्त चार वर्ष की थी और हमारी नर्सरी Manhattan के एक रिहायशी बिल्डिंग के छठे माले पर थी| उस सारी प्रक्रिया के कोई मायने मुझे समझ में नहीं आए| मैं मैंने उनकी तरफ़ संदिग्ध नज़रों से देखा| पर उन्होंने उत्साहवर्धक रूप से सिर हिलाया और कहा “प्रतिदिन, प्यारी नन्ही जान” (“Neshume-le”)|
और मैंने उनसे ये वादा किया| शुरुआत में, मुझे उत्सुकता थी , तो मैं ये कार्य करती रही| पर जैसे जैसे समय निकलता गया , और कुछ भी बदला नहीं, तो मुझे पानी डालने का याद रखना, काफी मुश्किल होने लगा| एक सप्ताह पश्चात मैने दादा से पुछा कि क्या मैं पानी डालना बंद कर सकती हूं? ना में सर हिलाते हुए उन्होंने कहा , “प्रतिदिन, प्यारी नन्ही जान” (Neshume-le)” | दूसरा सप्ताह और भी कठिन था और मुझे अपने कप में पानी डालने के वादे पे कुढ़न महसूस होने लगी| जब मेरे दादा दोबार आये , तो मैंने उन्हें कप वापस देने कि कोशिश करी की, पर उन्होंने लेने से मना किया और कहा “प्रतिदिन, प्यारी नन्ही जान” (Neshume-le) “ |
तीसरा सप्ताह होते होते मैं कप में पानी डालना भूलने लगी| कई मर्तबे मुझे पानी डालना अपने बिस्तर पे जाने के बाद याद आता था, और फिर मैं अँधेरे में जा कर कप में पानी डालती थी| पर मैं एक भी दिन पानी डालना नहीं भूली|| और फिर एक दिन उसमे दो हरी पत्तियां थीं जो पहले दिन नहीं थीं|
मुझे बहुत ही अचम्भा हुआ|दिन प्रतिदिन वो पत्ते बड़े होते चले गये| मैं बेसब्री से दादा को ये बताने का इंतज़ार करती रही और मुझे लगा मेरे दादा को भी मेरी तरह ही अचम्भा होगा| पर वो अचंभित नहीं थे| बहुत ही सावधानी से उन्होंने समझाया कि जीवन हर तरफ़ है और वो बहुत ही साधारण और अविश्वसनीय जगहों में छुपा होता है| मुझे बहुत ही हर्ष हुआ| “ क्या उसे सिर्फ पानी चाहिये, दादाजी”? उन्होंने प्यार से मेरा माथा सहलाया और कहा “ नहीं प्यारी नन्ही जान” (Neshume-le), उसे सिर्फ तुम्हारी श्रद्धा की आवश्यकता है’|
शायद ये सेवा की शक्ति का मेरा पहला शिक्षण था, पर उस वक्त मुझे इस तरह समझ में नहीं आया था| मेरे दादा ने उस वक़्त ये शब्द भी इस्तेमाल नहीं किये थे| उन्होंने कहा होगा कि हमें अपने और अपने आस पास के जीवन को प्रदान (bless) करना याद रखना होगा | और उन्होंने कहा होगा की जब हमें याद रहता है की हम जीवन को प्रदान (bless) कर सकते हैं, हम दुनिया की मरम्मत (repair) कर सकते हैं|
मनन के लिए बीज प्रश्न : इस बात से हम कैसे नाता रखते हैं कि जीवन को सिर्फ हमारी श्रद्धा की आवश्यकता है ? क्या आप एक निजी कहानी साझा कर सकते हैं जब आपको उस वक़्त जीवन सुधरता हुआ महसूस हुआ जब आपने उसे ( bless) प्रदान करना याद रखा ? वो क्या है जो आपको आपके बाहर एवं आपके अंदर के जीवन को प्रदान (bless) करना याद रखाती है ?