सिर्फ स्थिरता ही हमें बदल सकती है
द्वारा जीन क्लीन
आपका अपना अस्तित्व, आपका अपना स्वभाव ही है जो आपके सबसे करीब है; वो आप स्वयं हैं|उसके करीब पहुँचने का प्रत्येक कदम आपको उससे दूर ले जाता है| ध्यान (attention) ना अंदर है ना बाहर है, इसलिए आप ध्यान प्रक्रिया ( meditation) में नहीं जा सकते | जब आप ध्यान करना चाहते हैं, आप एक अवस्था बना लेते हैं, एक लक्ष्य होता है, जिसे आप हासिल करना चाहते हैं| ध्यान प्रक्रिया एक पदावनति ( reduction) नहीं है, ये एक प्रकार की आन्तरिकता (interiorization) नहीं है|इसलिए अगर आपमें थोडीसी भी चाहत कहीं पहुँचने की है, कुछ हांसिल करने की है, तो आप दूर चले जाते हैं, क्योंकि ध्यान प्रक्रिया आपकी स्वाभाविक स्थिति है, “ चिर उपस्थिति ” (presence) ही “ सब कुछ है “( IS )| आपका मन समय समय पे शांत हो सकता है, परन्तु उसका स्वाभाव क्रिया शीलता का है, कार्य का है | आपका शरीर भी शुन्य हो सकता है, तनाव मुक्त हो सकता है, परन्तु आपका शरीर भी कार्य शील है| और अगर हम मन एवं शरीर की कार्य शीलता को रोकते हैं तो ये उनके के स्वभाव के साथ हिंसा करने जैसा होगा |
हमारा मन बिलकुल मौन की स्थिति में आ जाना चाहिए, किसी भी भय , तृष्णा एवं कल्पनाओं से पूर्ण मुक्त | इस स्थिति में हम किसी भी छिपाव या दबाव से नहीं पहुँच सकते, किन्तु हर संवेदना एवं विचार को, बिना किसी गुणों के अवलोकन (Qualification), तिरस्कार, धारणा (Judgement) या तुलना के, स्वयं अनुभव करके ही पहुँच सकते हैं| अगर अनुत्प्रेरित ( unmotivated) जागरूकता ने काम करना है तो नियंत्रक को हटना होगा | सिर्क एक मौन होना चाहिए जो मन की रचना देखता रहे| जब भी हम विचारों को “जैसे हैं “ , के आधार पे देखते हैं, तो उत्तेजना ख़त्म हो जाती है, विचारों की गति कमजोर हो जाती है, और हम हर विचार को देख सकते हैं, उसके कारण एवं विषय के साथ | हम हर विचार को संपूर्णता के साथ देख सकते हैं और इस पूर्णता में कोई भी अंतर्द्वंद ( conflict) उत्पन्न हो ही नहीं सकता| फिर सिर्फ एक जागरूकता रह जाती है, एक शांति , जिसमे ना कोई दृष्टा (observer) है ना दृष्ट ( Observed) | अपने मन पे ज़ोर ना डालें | उसकी गति को उस प्रकार देखें जैसे आप उडती हुई चिड़ियों को देखते है| इस शुद्ध ( uncluttered) देखने की प्रक्रिया में आपके सारे अनुभव सतह पे आते हैं और साफ़ प्रकट होते हैं| क्योंकि अनुत्प्रेरित दृष्टी ना सिर्फ एक अभूतपूर्व शक्ति पैदा करती है वरन सारे तनाव मुक्त करती है, सभी प्रकार के संकोच की परतों से मुक्त करती है| आप अपने आपको पूर्ण रूप में देख पाते हो| सभी चीज़ों को दृष्टा भाव से देखना , आपकी जीवन शैली बन जाता है, और ये आपको आपके मूल स्वरुप, जो की प्राकृतिक रूप से ध्यान मग्न है, की ओर वापस ले जाता है |
शांत जागरूकता से ही शारीरिक एवं मानसिक स्वाभाव बदल सकता है| यह बदलाव पूर्ण रूप से सहज है| अगर हम खुद बदलने की कोशिश करते हैं तो सिर्फ हमारा ध्यान एक स्तर से, एक चीज़ से , दूसरे पे चला जाता है| हम एक भयानक चक्र में उलझ जाता हैं| इससे सिर्फ हमारी शक्ति एक बिंदु से दूस्र्रे बिंदु पर पहुंचती रहती है|इससे हम सुख एवं दुःख के बीच झूलते रहते हैं, जैसे ही एक स्थिति आती है वो दूसरे की और ले जाती है| सिर्फ सजीव स्थिरता , वह स्थिरता जिसमे स्थिरता बगैर हमारे कोशिश करे आती है, ही इस काबिल है की वह उस अनुबन्धन ( conditioning ) को पलट सके जिससे हमारा जैविक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक स्वाभाव गुजर चूका है| कोई नियंत्रक, चयनकर्ता या व्यक्तित्व इन विकल्पों को नहीं चुनता है| इस विकल्प हीन जीवन शैली में हर स्थिति के पास आज़ादी है की वो खुद ही खुलती जाए| आप एक पहलु छोड़ कर दूसरे पहलु को ना पकड़ें, क्योंकि पकड़ने वाला कोई है ही नहीं| जब आप एक चीज़ को समझते हैं और उसी पे ही जीते हैं, और बिना उसके सूत्रण (formulation) में अटके चलते हैं, तो आपने जो समझा है वो आपके खुलेपन में विलीन हो जाता है| इस शांति में अपने आप से बदलाव आता है, समस्या का समाधान होता है, और द्वैतवाद का अंत होता है|
मनन के लिए बीज प्रश्न: शांत जागरूकता ,आपके लिए क्या मायने रखती है| क्या आप एक ऐसी निजी कहानी साझा कर सकते हैं, जब सजीव स्थिरता ने आपको अपनी जैविक, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक अनुबंधन ( conditioning ) से उभरने में सहायता करी हो ? स्वयं अपने आप उभरने की आज़ादी ,जो विकल्पहीन जीवन शैली मैं उपलब्ध है और विकल्पों को खुद से चुनने की अपनी आज़ादी , में किस तरह का तालमेल देखते हैं? ?