मानव भूमिका
~ क्लाइम्बिंग पो ट्री द्वारा
ऐसी उत्सुकता मन में होती है कि क्या कभी सूर्य भोर से बहस करता है
कुछ सुबहों
उदय होना न चाहता हो
नर्म मुलायम पंख रूपी क्षितिज के नीचे से
या कभी आकाश थक जाता हो
एक समय पर हर स्थान पर होने से
मौसम के पल पल बदलते भाव
के अनुरूप स्वयं को अनुकूलित करने से
या कभी बादल खुद को बाँध कर रखने की कोशिश में
सो जाते हों
कुछ समय के लिए इधर उधर घूमने के लिए
गुरुत्वाकर्षण से सौदा करते हो
कभी सोचती हूँ अगर बारिश को गिरने से
डर लगता हो
या उसे तकलीफ होती हो
मुक्त करने से
क्या कभी बर्फ के टुकड़े परेशान हो जाते हों
सदैव उत्तम होने के कारण
हर एक टुकड़ा
अनन्य होने के प्रयास में
कभी सोचती हूँ क्या कभी तारे टूटने से पहले
स्वयं कोई कामना करते हैं?
या उन्हें अपने युवा तारों को
चमकना सिखाना होता हो
मैं सोचती हूँ यदि परछाईयों में चाहत हो
सूर्य को महसूस करने की, सिर्फ एक बार
या वो फेरबदल में गुम हो जाती हों
ना जानती हों वो कहाँ से आयी हैं
मैं उत्सुक हूँ ये जानने को कि
क्या सूर्योदय और सूर्यास्त
एक दुसरे का सम्मान करते हैं
भले ही वे दोनों कभी ना मिले हों
क्या ज्वालामुखी कभी तनावयुक्त होते हैं
क्या तूफानों को पछतावा होता है
क्या खाद को 'मृत्यु के पश्चात जीवन' में विश्वास रखते हैं
मैं सोचती हूँ क्या कभी सांस आत्महत्या करने के बारे में सोचती है
या हवा बस एक दफा बैठना चाहती हो
स्थिर होकर, कभी कभी
और दुनिया को सामने से गुज़रते हुए केवल देखना चाहती हो
या धुंआ ये जानते हुए पैदा हुआ हो की ऊपर कैसे उठना है
या इंद्रधनुष गुप्त रूप से ये सोचकर शर्माते हो
की कहीं उनके रंग ढंग से मेल ना खाते हों
मैं सोचती हूँ अगर बिजली अपना अलार्म लगाती हो
ये जानने के लिए की कब गिरना है
या नदियाँ कभी रुक जाती हों
और सोचती हों की शायद वापस मुड़ जाना चाहिए
या धाराएं गलत समुद्र में मिल जाते हों
और उनकी पूरी ज़िन्दगी पटरी से उतर जाती हो
मैं सोचती हूँ अगर बर्फ काले रंग की होना चाहती हो ?
या मिट्टी सोचती हो की वो बहुत गहरे रंग की है ?
या तितलियाँ अपने निशानों को छुपाना चाहती हों ?
या पत्थरों को अपने वजन को लेकर संकोची होते हों ?
या पहाडों को अपनी प्रचंडता को लेकर अरक्षित महसूस करते हों?
मैं सोचती हूँ क्या कभी लहरों का उत्साह हताहत होता है?
रेंग कर बालू तक जाना
केवल वापस खींच लिए जाने के लिए
वहां तक जहाँ से उन्होंने शुरुआत की थी
या धरती को ऐसा लगता हो की उस पर कदम रखे जा रहे हैं
या बालू स्वयं को महत्वहीन समझता हो
या पेड़ों को अपने प्रेमियों से सवाल करने हो
की उनकी अहमियत क्या है?
या टहनियां चौराहों को देखकर दुविधा में होती हों
यह निश्चित ना कर पाती हों की ओर जाना है
या पत्तियां ये समझती हों की वो बदलने-योग्य हैं
और फिर भी नाचती हों जब भी हवा चलती हो
मैं सोचती हूँ की चाँद को जब छुपना होता है
तो वो कहाँ जाती है?
मैं उसे वहीँ मिलना चाहती हूँ
और वहां से महासागर को एक दूरी से
घूमते हुए देखूंगी
नींद में बेचैन होते हुए
उसे सुनूँगी
प्रयास ही अस्तित्व के लिए रास्ता बनाता है
प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आपके अनुसार मानव होने का क्या मतलब होता है? क्या आप अपनी एक व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जब प्रकृति ने आपको स्वयं के स्वभाव को समझने और उससे जुड़ने में सहायता की हो? स्वयं के स्वभाव को समझने में क्या/कौन आपकी सहायता करता है ?