ध्यान : मन को फिर से शिक्षित करने की प्रक्रिया
भंते गुणरत्न
धीरे से, लेकिन दृढ़ता से, बिना परेशान हुए या अपने आप को भटकने के लिए दंडित करते हुए , बस सांस की सरल शारीरिक अनुभूति पर वापस लौटें। अगली बार फिर से यही करें , और फिर से, और फिर से यही करें।
कहीं न कहीं इस प्रक्रिया में, आप अचानक एक चौंकाने वाले अहसास से रूबरू होंगे कि आप पूरी तरह से पागल हैं। आपका मन चिल्लाने वाला , अस्पष्ट बोलने वाला ,एक पागलखाना है , जो कि तेज़ गति से पहियों के सहारे ड्रम को पर्वत के नीचे धकेलने वाली गति, में है और पूरी तरह नियंत्रण से बहार, अस्त व्यस्त और दिशा हीन है | इसे परशानि न समझें। आप कल से अधिक पागल नहीं हुए हैं। ऐसा तो हर वक़्त था ,आपने गौर ही नहीं किया। इस अहसास से आप अशांत न हों| यह तो एक मील का पत्थर है , एक वास्तविक प्रगति का संकेत है| चूँकि आपने इस समस्या को सीधे आँखों में देखा है, इसका मायने है की आप अपने सही , बहार निकलने वाले , मार्ग मे हैं |
सांस के शब्दहीन अवलोकन में, दो स्थितियों से बचना है: सोचना और डूबना। सोचने वाला मन सबसे स्पष्ट रूप से प्रकट होता है क्योंकि यह बंदर रुपी मन है जिसकी हम चर्चा कर रहे थे । डूबता हुआ मन लगभग उल्टा है। एक सामान्य शब्द के रूप में, डूबता हुआ मन जागरूकता के किसी भी लक्षण को नहीं दर्शाता है। अपने सबसे अच्छे रूप में यह एक मानसिक शून्य की तरह है, जिसमें कोई विचार नहीं है, सांस का अवलोकन नहीं है, किसी भी चीज के बारे में जागरूकता नहीं है। यह एक अंतराल है, एक निराकार, मानसिक अपरिभाषित क्षेत्र, जैसा कि स्वप्नविहीन नींद। डूबता हुआ मन एक शून्य है। इससे बचो।
जब आप पाते हैं कि आप डूबते हुए मन की स्थिति में आ गए हैं, तो बस इस तथ्य पर ध्यान दें और अपना ध्यान श्वास की संवेदना पर लौटाएँ। सांस की स्पर्श संवेदना का निरीक्षण करें। श्वास-प्रश्वास की स्पर्श संवेदना को महसूस करें। सांस लें, सांस छोड़ें और देखें कि क्या होता है। अपने लिए ऐसे लक्ष्य निर्धारित न करें जो बहुत ऊँचे हों। खुद के साथ कोमल रहें। आप लगातार और बिना रुके अपनी सांस का एहसास लेने का प्रयास कर रहे हैं। यह काफी आसान लगता है, इसलिए आपको अपने आप को समयनिष्ठ और सटीक करने के लिए शुरुआत में एक प्रवृत्ति होगी। यह अवास्तविक है। इसके बजाय छोटे समय से चलें । एक साँस लेने में, केवल एक साँस की अवधि के लिए सांस का एहसास करने का संकल्प करें। यह भी इतना आसान नहीं है, लेकिन कम से कम यह किया जा सकता है। फिर, साँस छोड़ते हुए , उस एक पूरे साँस छोड़ने के लिए, एहसास पालन करने का संकल्प लें।
आप फिर भी बार-बार असफल होंगे, लेकिन इसे बनाए रखें।हर बार जब भटकते हैं, तो फिर शुरू करें। एक बार में एक सांस लें। [...]
यह ध्यान, मन को फिर से शिक्षित की एक प्रक्रिया है। जिस स्तिथि के लिए आप प्रयास रहे हैं, वह वह है जिसमें आप अपने स्वयं के अवधारणात्मक ब्रह्मांड में होने वाली हर चीज के बारे में पूरी तरह से जागरूक हैं , एक पूर्ण , अखंड जागरूकता | ठीक उसी तरह से जैसे कि हो रहा है, जब भी होता है। यह एक अत्यंत उच्च लक्ष्य है, और एक बार में यहाँ तक नहीं पहुंचा जा सकता है। इसके लिए अभ्यास जरूरी है, इसी लिए हम छोटी शुरुआत करते हैं।
प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा को कैसे मानते हैं कि हमारा दिमाग एक 'चिल्लानेवाला , अस्पष्ट बोली वाला पागलखाना ' है? क्या आप उस समय की एक व्यक्तिगत कहानी साझा कर सकते हैं जिसमे आप सोच और डूबने से ऊपर उठने में सक्षम थे, और आप पूर्ण जागरूक थे ? आपको आपकी जागरूकता को गहरा करने में क्या मदद करता है?