मौन - जीन क्लाइन (८ जनवरी, २०२०)
मौन हमारा वास्तविक स्वभाव है। हम मौलिक रूप से केवल मौन हैं।
मौन शुरुआत और अंत से मुक्त है। यह सभी चीजों की शुरुआत से पहले था। यह अकारण है। इसकी महानता इस तथ्य में निहित है कि यह बस है। मौन में सभी वस्तुओं का अपना मूल स्थान होता है। यह वह प्रकाश है जो वस्तुओं को उनके आकार और रूप देता है। हर हरकत, हर गतिविधि मौन द्वारा सामंजस्य में आ जाती है।
शोर में मौन का कोई विपरीत नहीं है।
यह सकारात्मक और नकारात्मक से परे है।
मौन सभी वस्तुओं को विलीन कर देता है।
यह किसी भी ऎसी प्रतिवस्तु से संबंधित नहीं है जो मन से संबंधित है।
मौन का मन से कोई लेना-देना नहीं है।
इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता है लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया जा सकता है क्योंकि यह हमारी निकटता है।
मौन, प्रतिबंध या केंद्र के बिना, स्वतंत्रता है।
यह हमारी पूर्णता है, न तो शरीर के अंदर और न ही बाहर। मौन आनंदपूर्ण है, आनंददायक नहीं।
यह मनोवैज्ञानिक नहीं है।
यह वो भावना है जहाँ महसूस करने वाला नहीं है।
मौन को कोई मध्यस्थ नहीं चाहिए। मौन स्वयं की अनुपस्थिति है।
या यों कहें, मौन अनुपस्थिति की अनुपस्थिति है।
मौन से आने वाली ध्वनि संगीत है।
मौन से आने पर सारी गतिविधि रचनात्मक होती है।
यह लगातार एक नई शुरुआत है।
मौन भाषण और कविता और संगीत और सभी कला से पहले आता है।
मौन सभी रचनात्मक गतिविधियों का मूल स्थान है।
वास्तव में जो रचनात्मक है, वह शब्द है, वह सत्य है।
मौन शब्द है।
मौन सत्य है।
जो मौन में स्थापित है वह निरंतर अर्पण में, बिना पूछे प्रार्थना में, आभार में, नित्य प्रेम में रहता है।
प्रतिबिंब के लिए मूल प्रश्न: मौन का आपके लिए क्या अर्थ है? क्या आप कोई व्यक्तिगत कहानी बाँट सकते हैं जब आपने मौन में स्थापित होना महसूस किया हो? मौन को विकसित करने में आपको क्या मदद करता है?
यह लेख यहाँ से लिया गया है: https://mysticson.blogspot.com/2008/01/silence-jean-klein.html?m=1