Sense Of Self Is An Essential Skill Of Mind


Image of the Weekस्वयं की समझ मन का आवश्यक कौशल है
- पॉल फ्लिस्चमैन

पश्चिमी प्रेस में छपे कई लेखों ने बुद्ध के "अनत्ता" - सनातन आत्मा का अभाव के विचार की तुलना इस विचार से की है के ध्यान के द्वारा आप अस्तित्वा का ज्ञान भूल जाएँ। फिर प्रेस ने, इस बात पे जोर डालने के लिए न्यूरो-मनोविज्ञान का भी उपयोग किया। मनोविज्ञानी ब्रूस हुड, अपनी पुस्तक आत्म भ्रम में लोगों को कहते हैं के वे अपने आप की समझ को तुच्छ और छोड़ने योग्य समझें।

यह सब उस मनोचिकित्सक के लिए विस्मित करने वाला है जिसने अपने व्यावसायिक जीवन का ज़्यादातर हिस्सा अव्यवस्थित, नाजुक, और ढुलमुल लोगों को अपने आप की एक दृढ़ और सुसंगत पहचान बनाने की मदद करने में गुज़ार दिया हो। मुझे एक स्पष्ट वाक्य में इस पर जोर डालने दीजिये: हमारा अपने आप का ज्ञान हमारे द्वारा जनित है, यह हमारे मन का एक आवश्यक कौशल है। हमारे मन हमारे शरीर की संवेदनाओ की जानकारी से एकीकृत और निरंतर बदलती हुई हमारी पहचान बनाते हैं। यह हमें स्मरणशक्ति, निंरतरता, और लचीलापन प्रदान करता है, - आप इसे "चरित्र" या "व्यक्तित्व" भी कह सकते हैं - तुरंत प्रति-उत्तर देने की सीमा से परे।

हमारा अस्तित्व आत्म -जनित है यह समझना और उसका अवमूल्यन करना इन दोनों में बहुत अंतर है। आखिरकार कपडे, गाड़ियां, और घर जनित वस्तुएं हैं और हम इनके बिना जीने का प्रयत्न नहीं करते। हमारा शरीर जनित है और हम इस शरीर के बिना जीने की कल्पना भी नहीं करते। हमारा अपने आप का ज्ञान एकीकृत मनो वैज्ञानिक व्यवस्था है जो एक केंद्रित, निर्देशित, और आत्म-संगत जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है। मनो-वैज्ञानिक रूप से बुद्ध को अपने आप का पूर्ण ज्ञान था, जो उन्हें अपने ज्ञान वितरण और नेतृत्व से भरे जीवन में निरंतरता और संगती प्रदान करता था।

बहुत सारे लोगों को संगत, लचीला, जिम्मेदार, आतंरिक कार्यकारी अधिकारी बनाने में तकलीफ होती है। उनकी यह समस्या कई कारणों से हो सकती है न्यूरोलॉजिकल या पर्यावरण सम्बन्धी। ये लोग जो हमारे पडोसी या परिवार-जन हो सकते हैं बहुत दुःख-भोग करते हैं, क्यूंकि वे अपने आस-पास लक्ष्यों, प्रेम, लोगों और कार्यों की दुनिया नहीं बना पाते। हमें भ्रमित लोगों का कार्यकारी महत्व काम नहीं करना चाहिए ये मानकर के इन लोगों को अपने आप का ज्ञान छोड़ देना चाहिए सिर्फ इसलिए के उनका जीवन नश्वर है।

ध्यान करने से प्राप्त हुए ज्ञान में हमें अपना अस्तित्व काल्पनिक पता चलता है, जब हम हमारे दैनिक कार्य करते हैं हम अपने आप को भुद्ध जितना ही असरकारक होने की अपेक्षा करते हैं। हम विज्ञान के नियमों पर चल रही दुनिया में हैं जो बिग-बंग में उत्पन्न हुई ऊर्जा से चल रही है। हम अपने मन की रचनायें हैं जो नश्वर शारीरिक संवेदनाओ से प्रकट होती है। और हमारा जन्म खाने, ध्यान करने, मित्र बनाने, और नौकरी करने के लिए हुआ है। ये सारे आयाम सह-अस्तित्व में एक उच्चतर सत्य को प्रकट करते हैं।

मनन के लिए बीज प्रश्न :
अपने आप का ज्ञान जनित है और मन का आवश्यक कौशल है - इस भाव से आप कैसे जुड़ते हैं?
क्या आप एक निजी अनुभव बाँट सकते हैं जब आप ने आपने आप को एकीकृत मनोवैज्ञानिक व्यवस्था के रूप में जाना?
अपने आपका सम्मान करने में आप को क्या मदद करता हैं ये जानते हुए भी के ये ज्ञान रचित/जनित है?

पॉल र. फ्लिस्चमैन एक मनोवैज्ञानिक हैं, विपस्सना शिक्षक हैं, और आठ पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी सबसे हलिया किताब, "Wonder:When and Why the World Appears Radiant" है। उपरोक्त लेख उनके निबंध, " A Practical and Spiritual Path " से अनुवादित है।
 

Paul R. Fleischman is a psychiatrist, a teacher of Vipassana meditation, and an author of eight books, most recently, "Wonder: When and Why the World Appears Radiant". The Above is from his Essay, "A Practical And Spiritual Path"


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