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पारस्परिक अनुकूलन के लिए संवाद
- उर्सुला लेगुइन (२५ जुलाई, २०१८)
संवाद की हर एक क्रिया जबरदस्त साहस का काम है जिसमें हम अपने आप को दो समानांतर संभावनाओं के सामने समर्पित कर देते हैं: जो बीज हमारे मन में अंकुरित हुआ है उसे एक और मन में उगाने और उसे एक-दूसरे को समझने के एक मन-लुभाने वाले फूल में बदलते देखने की संभावना; और पूरी तरह से गलत समझा जाने की संभावना, केवल एक सूखती हुई खरपतवार बन जाने की सम्भावना।
स्पष्टवादिता और स्पष्टता मिट्टी को उपजाऊ बनाने में बहुत मदद करते हैं, लेकिन अंत में हमेशा संवाद के माहौल में एक हद तक अनिश्चितता होती है - यहां तक की अच्छे से अच्छे इरादे भी अस्वीकारीय हो सकते हैं । फिर भी कुछ तो है
जो हमें प्रेरित करता है दोनों हाथों में इन संभावनाओं को पकड़ने और वार्तालाप की सुंदरता और आतंक की ओर आत्मसमर्पण करने के लिए, जो कि प्राचीन और स्थायी मानव शक्ति है। और सबसे जादुई बात, सबसे पवित्र बात है, कि जो भी परिणाम हो, हम अंत में बोलने और सुनने की इस असुरक्षित बनाने वाली प्रक्रिया में एक-दूसरे को बदल देते हैं।
जीवित, आमने-सामने होने वाले मानव संवाद अन्तःव्यक्तिपरक है। अन्तःव्यक्तिपरकता में मशीनी मध्यस्थता जैसी प्रोत्साहन-प्रतिक्रिया जिसे आजकल “संवादात्मक” ("इंटरैक्टिव) कहते हैं, से बहुत अधिक चीज़ें सम्मिलित होती हैं। यह प्रोत्साहन-प्रतिक्रिया बिलकुल नहीं है, एक यांत्रिक पहले से बने कोड को भेजने और प्राप्त करने का अदलाव-बदलाव नहीं है।
अन्तःव्यक्तिपरकता पारस्परिक है। यह दो चेतनाओं के बीच एक निरंतर विनिमय है। बॉक्स ए और बॉक्स बी, सक्रिय विषय और निष्क्रिय वस्तु की भूमिकाओं के बीच का अदलाव-बदलाव होने की बजाय, यह एक सतत अन्तःव्यक्तिपरकता है जो हर समय दोनों ओर जाती है।
यदि आप दीवार पर पास-पास दो घड़ियों के पेंडुलम लगा देते हैं, तो वे धीरे-धीरे एक साथ लय में चलना शुरू कर देंगे। दोनों में से निकलने वाले छोटे-छोटे कम्पन जिन्हें वो दीवार में संचारित करते हैं, उनसे वो एक-दूसरे को समक्रमिक कर देते हैं।
कोई भी दो चीजें जो एक ही अंतराल पर कम्पित होती हैं, यदि वे शारीरिक रूप से एक-दूसरे के पास होती हैं, तो धीरे-धीरे वे एक-दूसरे से जुड़ जाती हैं और दोनों एक से अंतराल पर चलने लगती हैं। चीजें आलसी होती हैं। विपक्ष में कम्पित होने की तुलना में साथ-साथ कम्पित होने में कम ऊर्जा लगती है। भौतिक विज्ञानी इस खूबसूरत, लाभप्रद आलस्य को पारस्परिक फेज़ लॉकिंग, या पारस्परिक अनुकूलन कहते हैं।
सभी जीवित प्राणी दोलक(oscillators) हैं। हम कंपन करते हैं। अमीबा या मानव, हम स्पंदन करते हैं, लयबद्ध रूप से चलते हैं, तालबद्ध रूप से बदलते हैं; हम समय से चलते हैं। आप यह माइक्रोस्कोप के नीचे अमीबा में देख सकते हैं, परमाणु आणविक, उपकोशिकीय, और कोशिकीय (cellular) स्तर पर आवृत्तियों में हिलते देख सकते हैं। यह निरंतर, नाजुक, जटिल स्पंदन ही वो प्रक्रिया है जिससे जीवन स्वयं दिखाई देता है।
हम, विशाल कई कोशिकाों वाले जीवों को अपने शरीर और पर्यावरण में लाखों अलग-अलग आवेश की आवृत्तियों और
आवृत्तियों के बीच के संवाद का समन्वय करना पड़ता है। ज़्यादातर संयोजन लयों के समन्वय, उन लयों को बड़ी ताल में लाने से, पारस्परिक अनुकूलन से प्रभावित होता है।
दो पेंडुलमों की तरह, हालांकि अधिक जटिल प्रक्रियाओं के माध्यम से, दो लोग भी एक साथ परस्पर एक-दूसरे के स्पदन से प्रभावित हो सकते हैं। सफल मानव संबंध में पारस्परिक अनुकूलन शामिल है - समकालीन बन जाना। यदि ऐसा नहीं होता, तो संबंध या तो असहज होता है या विनाशकारी। [...]
जब आप श्रोता को एक शब्द बोलते हैं, तो बोलना एक कार्य है। और यह एक आपसी कार्य है: श्रोता का सुनना बोलने वाले की बोली को समर्थ बनाता है। यह एक सांझी घटना है, दो चेतन दिमागों के बीच होने वाली: श्रोता और बोलने वाला एक दूसरे के साथ अनुकूलित हो जाते हैं। दोनों अमीबा समान रूप से जिम्मेदार होते हैं, समान शारीरिक रूप से, तुरंत खुद के अंशों को साझा करने में जुटे होते हैं।
वक्ताओं और श्रोताओं के बीच का आपसी संचार एक शक्तिशाली कार्य है। सुनने वालों के अनुकूलन के कारण हर एक श्रोता की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। अपनी बात-चीत के पारस्परिक अनुकूलन से समुदाय की ताकत बढ़ जाती है।
यही कारण है कि वाक्यांश जादू है। शब्दों में ज़रूर शक्ति है। नाम में शक्ति है। शब्द घटना हैं, वो चीजें करते हैं, चीजों को
बदलते हैं। वे वक्ताओं और सुनने वाले, दोनों को बदलते हैं; वे ऊर्जा को आगे-पीछे पोषित करते हैं और इसे बढ़ाते हैं। वे समझ या भावना को आगे-पीछे पोषित करते हैं और इसे बढ़ाते हैं।
प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: पारस्परिक अनुकूलन से आप क्या समझते हैं?? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने अपनी बातचीत में पारस्परिक अनुकूलन को महसूस किया हो? आपसी पारस्परिक अनुकूलनता के लिए प्रतिबद्ध रहने में आपको किस चीज़ से मदद मिलती है।
उर्सुला क्रॉबर ल गुइन एक अमेरिकी विज्ञान-कथा उपन्यासकार थे। 'वास्तविक मानव वार्तालाप के जादू' से उद्धृत।