Don't Side With Yourself


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अपना पक्ष मत लो
- जोसेफ गोल्डस्टीन (२० जून, २०१८)

सचेतता के माध्यम से, हमारे दिल दर्दनाक भावनाओं को समेटने, उनकी पीड़ा को महसूस करने और उन्हें छोड़ देने के लिए, पर्याप्त रूप से विशाल हो जाते हैं। लेकिन इसके लिए अभ्यास की आवश्यकता है - और शायद कई अलग-अलग तरह की साधनाओं की - उन मुश्किल भावनाओं को खोलने के लिए जिनके बारे में हमें मालूम है और जो छिपी हुई हैं, उन्हें प्रकाशित करने के लिए।

मुश्किल भावनाओं के साथ रहने में कुछ विशेष कठिनाइयों और चुनौतियां होती हैं। हम अक्सर उन्हें नकार देते हैं। अपने छाया पक्ष को खोलना हमेशा आसान नहीं होता है। और यहां तक ​​कि जब हम जानते भी हैं, तो भी हम इन भावनाओं के लिए अपने आप को सफाई पेश करते रहने में उलझे रहते हैं: "मुझे इन लोगों से नफरत करनी चाहिए - देखो उन्होंने क्या किया।" घृणा और शत्रुता की इन भावनाओं की सफाई देने से (जो उनके बारे में सजग होने से काफी अलग है), दम्भ की एक प्रबल भावना आ सकती है। हम भूल जाते हैं कि जो भावनाएं और चित्त-वृत्तियाँ हममें हैं, वो सब हमारे जीवन की विशेष स्थितियों से उत्पन्न हुई अनुकूलित प्रतिक्रियाएं हैं। एक ही स्थिति में अन्य लोग बहुत अलग चीजें महसूस कर सकते हैं। हालांकि कभी-कभी विश्वास करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन हमारी भावनाएं जरूरी नहीं कि किसी अंतिम सत्य का प्रतिबिंब हों। 17 वीं शताब्दी के महान ज़ेन मास्टर बैंकी ने हमें याद दिलाया: "अपना पक्ष मत लो।"अपनी भावनाओं और विचारों के बारे में दम्भ प्रतिबद्धता का छाया पक्ष है। हम कभी-कभी इस आत्म-औचित्य को भावुक समर्पण की भावना के साथ उलझा लेते हैं। लेकिन करुणा और सामाजिक न्याय के महान उदाहरण इस अंतर को उजागर करते हैं।

सवाल यह नहीं है कि क्या हमारे भीतर या हमारे आस-पास की दुनिया में - अवांछित दिमागी अवस्थाएं उभरेंगी या नहीं। घृणा, शत्रुता, भय, दम्भ, लालच, ईर्ष्या और जलन की भावनाएं अलग-अलग समय पर उत्पन्न ज़रूर होती हैं। हमारी चुनौती उन सभी को सचेतता से देखना, यह समझना कि ये अवस्थाएं अपने आप में पीड़ा का कारण हैं और उनपर आधारित उठाया कोई भी कदम हमें इच्छित परिणाम नहीं देगा - ना अपने अंदर शांति और ना दुनिया में शांति।

इसका तरीका सचेतता है, इसकी अभिव्यक्ति करुणा है और इसका सार ज्ञान। ज्ञान अस्थायी को, अनुभव की क्षणिक प्रकृति और इन बदलती घटनाओं की बुनियादी अविश्वसनीयता को देखता है। ज्ञान हमारे दिमाग को निःस्वार्थता के अनुभव, बुद्ध के ज्ञान के महान मुक्त करने वाले हीरे की तरफ खोलता है। यह समझ, बदले में, दुनिया के साथ एक दयालु जुड़ाव को पैदा करती है। एक महान तिब्बती गुरु, दिलगो खयेंसे रिनपोचे ने सिखाया: "जब आप खाली प्रकृति को पहचानते हैं, तो दूसरों की भलाई करने की ऊर्जा अनियंत्रित और सहज रूप से आ जाती है।" और ज्ञान से पता चलता है कि किसी चीज़ से ना चिपकना स्वतंत्रता का एकजुट अनुभव है। हम देखते हैं कि ना चिपकना अपने मन को विकसित करने की साधना और और जागृत मन की प्रकृति दोनों ही हैं।

टी.एस. एलियट ने "चार चौथाई" से कुछ पंक्तियों में यह अच्छी तरह से व्यक्त किया।
पूर्ण सादगी की एक स्थित
(जिसकी सबकुछ से कम लागत नहीं)
और सब ठीक हो जाएगा और
सभी तरह की चीजें अच्छी तरह से होंगी।

प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आप अपना पक्ष ना लें, इस ज़ेन उपदेश से क्या समझते हैं? क्या आप उस समय का कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आप अपने खुद के अनुकूलन को आमने सामने देख पाए हों और अपने दम्भ की भावना से पार हो सके हों? अपनी सभी भावनाओं को सचेतता से देखने में आपको किस चीज़ से मदद मिलती है?

जोसेफ गोल्डस्टीन, “तीन तरीके से शांति” से उद्धृत।
 

Joseph Goldstein, excerpted from Three Means to Peace.


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