Attachments Are Not Set in Stone

Author
Robina Courtin
23 words, 14K views, 6 comments

Image of the Week
आसक्तियां पत्थर में खींची लकीर की तरह नहीं होतीं
- रोबीना कोर्टिन द्वारा लिखित ( 23 जून, 2017)

आसक्ति एक सरल शब्द है, लेकिन यह बहुआयामी है। सबसे बुनियादी स्तर पर यह हमारे अंदर एक गहरी जरूरत का अहसास है; वह विश्वास कि मैं किसी तरह से पर्याप्त नहीं हूं, मेरे पास पर्याप्त नहीं है, और मैं चाहे जो भी करता हूं या जो भी पाता हूं, यह कभी भी पर्याप्त नहीं होता। फिर, ज़ाहिर है, क्योंकि हम इस हद तक मान चुके हैं कि यह सच है, हम वहां किसी के लिए लालायित हो जाते हैं, और जब हम उस व्यक्ति को ढूंढ लेते हैं जो हमारी अच्छी भावनाओं को सक्रिय करता है, तो हम उसे पाने के लिए खुद को आसक्त कर लेते हैं, यह मानकर कि यही वो हैं जो हमारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं और हमें वास्तव में खुश और संतुष्ट बनाते हैं। हम मान लेते हैं कि वे हमारी सम्पत्ति हैं, और लगभग जो हम हैं उसका एक विस्तार हैं।

यह लगाव हमारी सभी अन्य नाखुश भावनाओं का स्रोत है। क्योंकि यह जो चाहता है उसे उग्रता से चाहता है, जिस पल में वह उसे नहीं पाता - जिस पल में वह फ़ोन नहीं करता, या देर से घर आता है, या किसी और को देखता है - आतंक पैदा होता है और तुरंत क्रोध और फिर ईर्ष्या या निम्न आत्मसम्मान, या जो भी हमारी पुरानी आदतें हैं, उनमें बदल जाता है। असल में, क्रोध वह प्रतिक्रिया है, जब आसक्ति को वह नहीं मिलता तो जो वो चाहती है। ये सभी मान्यताएं हमारे अंदर इतनी गहराई से अंकित हैं, और हम इन कहानियों पर इतना पूरी तरह से विश्वास करते हैं, कि उन पर सवाल उठाना भी हास्यास्पद लगता है। लेकिन हमें ऐसा करने की आवश्यकता है। और हम जिस एकमात्र तरीके से इसे कर सकते हैं वो है अपने मन और भावनाओं को जानने के द्वारा: दूसरे शब्दों में, हमें यह जानने की ज़रूरत है कि हम अपने चिकित्सक खुद कैसे बनें।

तथ्य यह है कि आसक्ति, क्रोध, ईर्ष्या और कोई भी अन्य दर्दनाक भावना पत्थर में खींची लकीर की तरह नहीं होतीं; वे पुरानी आदतें हैं, और हम जानते हैं कि हम उन को बदल सकते हैं। पहला कदम है आत्मविश्वास रखना कि अपने दिमागों को अच्छी तरह से जानने के द्वारा लिए हम अपने अंदर विभिन्न भावनाओं को भेदना सीख सकते हैं और धीरे-धीरे उन्हें बदलना सीख सकते हैं। पहली चुनौती वास्तव में यह विश्वास करना है कि आप ऐसा कर सकते हैं। और वह अकेले ही बहुत बड़ी बात है - इसके बिना, हम फंस जाते हैं।

अगले चरण में हमें अपने दिमाग की अंतहीन बकवास से पीछे हटना है। ऐसा करने का एक बहुत आसान तरीका है - यह इतना मौलिक है कि यह उबाऊ (boring) है! - हर सुबह बस कुछ ही मिनटों के लिए है, इससे पहले कि हम अपना दिन शुरू करें, बैठकर किसी बात पर ध्यान दें। श्वास एक अच्छी शुरुआत है। यह कोई खास चीज़ नहीं है; इसमें कोई जादू नहीं है; यह रहस्यमय नहीं है। यह एक व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक तकनीक है। दृढ़ संकल्प के साथ आप अपनी सांस पर ध्यान देने का फैसला कर सकते हैं - आपके नाक पर होने वाली सनसनी पर, जब आप अंदर और बाहर सांस लेते हैं। जिस पल आपका मन भटकता है, अपने ध्यान को वापस साँस में ले आओ। लक्ष्य विचारों को दूर करना नहीं है; लेकिन उन में शामिल नहीं हों, और उन्हें जाने और जाने देना सीखें।

प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं कि हमारी आसक्तियां पत्थर में खींची लकीर की तरह नहीं होतीं ? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने अपनी कहानियों को स्पष्ट रूप से सुना हो और उनको बदल दिया हो? आपको अपने खुद का चिकित्सक बनने में क्या मदद करता है?

ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुईं तिब्बती बौद्ध नन, रोबीना कोर्टिन, विश्वबर में घूमकर बौद्ध मनोविज्ञान और दर्शन को पढ़ाती हैं और जरूरतमंद लोगों की मदद करती हैं। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की जेलों में लोगों के साथ और मृत्यु दंड की सज़ा भुगतने वाले कैदियों सहित। रोबीना की जिंदगी और काम अमील कोर्टिन विल्सन की पुरस्कार विजेता फिल्म चेसिंग बुद्ध का विषय है।
 

Australian-born Tibetan Buddhist nun Robina Courtin travels the world teaching Buddhist psychology and philosophy and helping those in need. Well known for her work for 14 years with people in prisons in the US and Australia, including inmates on death row, Robina’s life and work is the subject of Amiel Courtin Wilson’s award-winning film Chasing Buddha.
 


Add Your Reflection

6 Past Reflections