Why I Make Movies

Author
Mickey Lemle
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Image of the Weekमैं फ़िल्में क्यों बनाता हूँ
-- मिकी लैमलि (९ नवम्बर. २०१६)

सभी फिल्में एक भ्रम हैं। हमें लगता है कि हम कुछ चलता हुआ देख रहे हैं, लेकिन वास्तव में हम हर सेकेंड में चौबीस तस्वीरें देख रहे हैं। आधा समय वास्तव में स्क्रीन काली होती है। फिर भी फिल्में इतनी असली लगती हैं, और कुछ में महान सत्य को प्रकट करने की सम्भावना भी होती है। हिंदू परंपरा में, हम जैसे बाहर की दुनिया को देखते हैं उसे माया या भ्रम कहा गया है। उसे एक परदा कहा गया है जो सच्चाई को छुपा देता है। लेकिन माया का एक और पहलू है, जो कि सच्चाई को सामने लाने की शक्ति है। फिल्म और अन्य कला के माध्यम माया के इन दोनों पहलुओं को सम्मिलित कर सकते हैं।

"आप किस तरह की फ़िल्में बनाते हैं? लोगों को यह बताने के बाद कि मैं एक फिल्म निर्माता हूं तो वो अक्सर मुझसे पूछते हैं। "वृत्तचित्र," मैं उन्हें बताता हूँ। "ओह, वास्तविकता के बारे में फिल्में," वे कहते हैं। "सच्ची कहानियों।"

"वास्तविकता" या "सच" के मुद्दे पर किसी भी फिल्म, विशेष रूप से वृत्तचित्र के निर्माण में एक निरंतर तनाव होता है। फिल्म निर्माताओं को मालुम होता है कि हर बार जब हम इस बात का निर्धारण करते हैं कि कैमरा कहाँ रखा जाए या उसे कब चालू या बंद किया जाए, तो हम वास्तविकता की व्यक्तिपरक धारणा के बारे में चुनाव कर रहे हैं। जब हम फ़िल्म को संपादित करते हैं, जैसा कि मैंने अपनी नवीनतम फिल्म में किया था, नब्बे घंटे की फ़ुटेज नब्बे मिनट में, तो हम स्पष्ट रूप से वास्तविकता, या सच की जोड़ तोड़ कर रहे हैं।

सबसे अच्छे कहानिकारों की तरह, मैं तथ्यों को सच्चाई के मार्ग में नहीं आने देता। कुछ लोगों को यह बात सुनी सुनाई लग सकती है, लेकिन यह कला का स्वभाव है। मेरा हेतु दर्शकों को द्रवित करना है: सबसे महत्वपूर्ण है, उन्हें एक महान कहानी सुनाना जो उनकी रुचि और ध्यान को बनाए रखे और फिर उसे महसूस और व्यक्त करने की अपनी क्षमता द्वारा उन्हें कुछ गहरी सच्चाई के संपर्क में लाना। इस तरह, यदि दर्शक तैयार है, तो जिस तरीक़े से हम दुनिया को और ख़ुद को देखते हैं, फिल्म में उसे बदलने की क्षमता होती है। विडंबना यह है कि ऐसा करने के लिए मुझे वास्तविकता में हेरफेर करना पड़ता है।

एक कलाकार के रूप में, हम हमेशा धारणा के साथ खेलते हैं। हम में से ज्यादातर लोग मानते ​​हैं कि जो हम देखते हैं वो सच है। "देखकर ही विश्वास किया जाता है" जैसा कि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, क्या आप ने हाल ही में एक सुंदर सूर्यास्त देखा है? यहाँ कोपर्निकस और गैलीलियो के बाद सैकड़ों वर्ष बीत गए, और हम अब भी सूर्यास्त देख रहे हैं। सूर्य अस्त नहीं होता। पृथ्वी घूमती है और सूर्य को छिपा देती है।

न्यूटन के दिनों में, प्रकृति के पक्के नियम थे। आइंस्टीन ने बताया है कि सब कुछ तुलनात्मक है।

हम सच को कैसे देखते हैं, आमतौर पर वो हमारे सोचने के तरीक़े से प्रभावित होता है। संकरी सोच के तरीक़ों में, किसी भी कट्टरपंथता में, कोई परम सत्य हो सकता है। सच्चा विश्वास करने वाले ऐसा मानते हैं कि उनकी -और उनकी विशिष्ट धारणाओं में - सत्य पर पूरी पकड़ है।

महात्मा गांधी एक बार पूरे भारत में एक बहुत बड़ी विरोध मार्च चला रहे थे। मार्च में कुछ दिन बीते, तो उन्हें पता चला कि वहाँ बहुत हिंसा होने वाली है, और उन्होंने अचानक घोषणा की कि वह मार्च को रोक रहे है। उनके अनुयायियों और समर्थकों में से कुछ ने कहा, "लेकिन गांधी जी, आप इस मार्च बंद नहीं कह सकते। पूरे भारत में, बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी और इतनी दूर -दूर से इस मार्च में भाग लेने के लिए आए। गांधी ने कहा, "सिर्फ भगवान ही परम सत्य को जानता है। मैं सिर्फ तुलनात्मक सच्चाई जानता हूँ। मेरी निष्ठा सच के लिए होनी चाहिए, अनुकूलता के लिए नहीं।"

शायद महान कला के सामने हमारा सत्य की उपस्थिति को महसूस करने का एक कारण यह है कि वह हमें अपने सोचने के तरीक़े से बाहर निकालती है और हमारे मन को और गहरी संभावनाओं के लिए खोलती है। मेरा मानना ​​है कि हम में से हर एक के अंदर एक ईमानदार साक्षी है जो, जब हम सत्य की उपस्थिति में होते हैं, सिहरता है। वह प्रतिध्वनित होता है, जैसे जब कोई प्रकृति में परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करता है, एक नए जन्म, एक फूल, एक समुद्री तूफान, एक ज्वालामुखी, या एक बवंडर का साक्षी होता है। हम एक विस्मय और सौंदर्य के खिंचाव का अनुभव करते हैं। जैसा कि जेम्स जॉयस कहते हैं, हम सब चीज़ों के आदि कारण, उनके रहस्य के सम्पर्क में हैं। मैं जॉइस का समर्थक हूँ। हम उसी का प्रयास करते हैं। बहुत अच्छे दिनों में, हम उसके बहुत पास पहुँच सकते हैं।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप परम सत्य और तुलनात्मक सत्य के अंतर से क्या समझते है? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपकी गहराई में छिपा ईमानदार साक्षी अनुकम्पित हुआ हो? आप वास्तविकता को स्वीकार करने का और वास्तविकता में हेर-फेर लाने का आपस में सामंजस्य कैसे करते हैं ?

मिकी लैमलि एक फिल्म निर्माता हैं जिन्होंने दलाई लामा, राम दास और कई अन्य लोगों का चित्रांकन किया है। यह अंश पैराबोला में प्रकाशित उनके लेख से लिया गया है।
 

Mickey Lemle is a filmmaker who has profiled the Dalai Lama, Ram Dass and many others.  This excerpt was taken from his article in Parabola.


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