Theory and Practice

Author
Vincent Horn
30 words, 18K views, 10 comments

Image of the Weekसिद्धांत और अभ्यास
- विन्सेंट हॉर्न (१८ जनवरी, २०१७)

यदि हम देखें कि सिद्धांत क्या है, तो यह अनिवार्य रूप से प्रत्यक्ष अनुभव की एक कल्पना मात्र, या प्रतिनिधित्व है। यह अपने विचारों के माध्यम से अपनी समझ को लेना और उसे किसी अन्य व्यक्ति को प्रसारित कर देने का एक रास्ता है। भाषा एक ऐसी ही महत्वपूर्ण नई खोज है, क्योंकि यह हमें ऐसा करने में मदद करती है।

क्योंकि सिद्धांत एक कल्पना मात्र या प्रतिनिधित्व है, बिना असल में उसका अनुभव किये, या वास्तव में यह समझे कि ये चीजें किस ओर संकेत कर रही हैं, कल्पनाएं केवल कल्पनाएं ही रह सकती हैं। हम सब ऐसे लोगों को जानते हैं जो गलती से वास्तविकता के बारे में होने वाली अवधारणाओं को वास्तविकता ही मान लेते हैं। जब अभ्यास से अधिक सिद्धांत पर ज़ोर दिया जाता है तो क्या होता है, इसका जीता-जागता उदाहरण देखने के लिए हमें केवल किसी ऐसे विद्वान्, जो सोचता है कि उसे सब मालुम है, या किसी पढ़ाकू के बारे में सोचने की ज़रूरत है।

अभ्यास से अधिक सिद्धांत पर ज़ोर देने का दूसरा पहलू, सिद्धांत से अधिक अभ्यास पर ज़ोर देने में है। कई लोगों का यह मानना है कि आपको केवल अभ्यास करने की आवश्यकता है और आप को सब कुछ अपने आप ही समझ आ जाएगा। लेकिन आप यह कैसे समझ पाएंगे कि आप अभ्यास क्यों कर रहे हैं या आपको अभ्यास करना सीखने की क्या आवश्यकता हैं?

अगर आप अभ्यास पर बहुत अधिक ज़ोर देते हैं तो जो तिब्बती ध्यान गुरु चोजयम जुंगपा ने कहा कि आपको “मूर्ख साधक" मिलते हैं - वो लोग जो ये नहीं जानते कि वो क्या कर रहे हैं और क्यों। उन्हें वास्तव में कभी वो मिला ही नहीं जिसे वो ढूंढ रहे थे, इसलिए वो साधना करने के अंतहीन चक्कर में घूमते रहते हैं, जो किसी दिलचस्प चीज़ तक तो पहुंच देता है, पर उस तक नहीं जो मिलना चाहिए था।

सिद्धांत को छोड़ देने का एक और ख़तरा यह है कि जो अनुभव हमें हुए हैं हमें उनको अपने जीवन में समाहित करने में मुश्किल होती है। हमें परेशानी इसलिए होती है क्योंकि हम सोचने वाले मन के महत्व को त्याग रहे हैं। हमारी जटिल मानसिक क्षमताऐं और अत्यधिक विकसित दिमाग ही हैं जो हमें साफ़ तौर पर मानव बना रहे हैं। जटिल विचारों के बिना यह संभव नहीं लगता कि हम अपने आप से महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सवाल पूछने में सक्षम होंगे। होमो सेपियन लेटिन भाषा में "जानने वाले इंसान” या "बुद्धिमान आदमी" को कहते हैं। यह एक त्रासदी होगी अगर हम अपने विकासवादी विरासत से "बुद्धिमान" को हटा कर फेंक दें।

उत्साहजनक बात​ यह है कि अगर हम इन उपयोगी सिद्धांतों को व्यवहार में ला सकते हैं, उन्हें नक्शे के रूप में उपयोग करते हुए हमें हमारे रास्ते खोजने में मदद करने के लिए है, तो हम खुद प्रत्यक्ष अनुभवों को पाने लग जाते हैं। ऐसा करने से हम आंतरिक वैज्ञानिक बन जाते हैं, और इन सिद्धान्तों की पुष्टि, उन्हें अस्वीकार करना, और यहां तक ​​कि जो सिद्धांत हमें सौंप दिये गए हैं, हम उन्हें और विकसित करने लगते हैं। जब हम उनकी वैधता का परीक्षण कर सकते हैं तो वो सिद्धांत जीवित हैं। वे अंत बिंदु नहीं बल्कि एक अविश्वसनीय यात्रा का प्रारंभिक बिंदु हैं।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप अपने जीवन में सिद्धांत और व्यवहार दोनों की ज़रूरत होने से क्या समझते हैं? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जो सिद्धांत के महत्व को दिखाता हो? आप को अपने जीवन में सिद्धांतों की वैधता का परीक्षण करने के लिए क्या प्रेरित करता है?

विन्सेंट हॉर्न द्वारा लखित “इस पृष्ठ” के कुछ अंश।
 

by Vincent Horn, excerpted from this page.


Add Your Reflection

10 Past Reflections