Simplicity of the Heart

Author
J. Krishnamurti
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मन की सादगी
-- जि. कृष्णमूर्ति (७ सितंबर, २०१६)


मन की सादगी का संपत्ति की सादगी से कहीं अधिक महत्व और अर्थ है। कम चीजों से संतुष्ट रहना अपेक्षाकृत आसान काम है। सुविधाओं का त्याग कर देना, या धूम्रपान और अन्य आदतों को छोड़ देना, मन की सादगी का संकेत नहीं है। इस दुनिया में, जो कपड़े, आराम और अन्य ध्यान आकर्षित करने वाली चीजों से प्रभावित है, वहां लंगोटी धारण कर लेना मुक्त होने का संकेत नहीं है। एक ऐसा आदमी था जिसने है दुनिया और उसके तरीकों को छोड़ दिया था, लेकिन उसकी इच्छाऐं और जुनून उसे घेरे हुए थे; उसने एक साधु का वेश धारण कर लिया था, लेकिन उसे शांति नहीं मिली। उसकी आँखें सर्वदा कुछ ढूंढ रहीं थीं, और उसके संदेहों और उम्मीदों ने उसके मन को चीर रखा था।

बाहरी तौर पर आप अनुशासन रखते हैं और त्याग करते हैं, आप अपना रास्ता खुद खोजते हैं, एक कदम से दूसरे कदम तक, अंत तक पहुंचने के लिए। आप अपनी उपलब्धियों की प्रगति को अपने सदगुणों के मापदंड से मापते है: कैसे आपने ये या वो छोड़ दिया है, आप अपने व्यवहार में कितने नियंत्रित हैं, आप कितने उदार और दयालु हैं, इत्यादि। आपने एकाग्रता की कला सीख ली है, और आप एक जंगल, एक मठ या एक अंधेरे कमरे में ध्यान करते हैं; आप अपना दिन प्रार्थना और जागरूकता में बिताते हैं। बाहरी तौर पर आपने अपने जीवन को सादा बना लिया है, और इस विचारशील और खूब अच्छे से सोची हुई व्यवस्था के माध्यम से आप उस आनंद तक पहुँचने की उम्मीद कर रहे हैं जो इस दुनिया से परे है।

लेकिन क्या वास्तविकता को बाहरी नियंत्रण और प्रतिबंधों के माध्यम से पाया जाता है? जबकि बाहरी सादगी, सुख-सुविधाओं को छोड़ देना, स्पष्टतः आवश्यक है, लेकिन क्या ऐसा करने से वास्तविकता का दरवाज़ा खुल जाएगा? सुविधाओं और सफलताओं में फंसे रहने से दिल और दिमाग पर बोझ पड़ता है, और ये यात्रा करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए; लेकिन हम इन बाहरी संकेतों के लिए इतने परेशान क्यों होते हैं? हम अपने ध्येय को बाहरी अभिव्यक्ति देने के लिए इतनी उत्सुकता से क्यों लगे हैं? क्या यह स्वयं को धोखा देने का डर है, या इस बात का कि और लोग क्या कहेंगे? हमें अपने आप को अपनी अखंडता का विशवास दिलाने की ज़रूरत क्यों है? क्या इस सारी समस्या की जड़ निसंदेह होने की इच्छा में, कुछ बनने के लिए अपने आपके के महत्त्व के प्रति आश्वस्त होने की इच्छा में नहीं है?

कुछ होने की इच्छा जटिलता की शुरुआत है।खुद को खोजने की बढ़ती इच्छा से प्रेरित, आंतरिक और बाहरी तौर पर, हम संचय या त्याग करते हैं, बनाते या छोड़ते हैं। जब हम देखते हैं कि समय हर चीज़ को चुरा कर ले जाता है, हम कालातीत से जुड़ते हैं। अपने अस्तित्व को रखने के इस संघर्ष को, सकारात्मकता या नकारात्मकता से, लगाव या वैराग्य के माध्यम से, किसी भी बाहरी संकेत, अनुशासन या अभ्यास के द्वारा कभी नहीं सुलझाया जा सकता; लेकिन इस संघर्ष की जानकारी, स्वाभाविक और अनायास रूप से, उनके संघर्ष के साथ होने वाले बाहरी और आंतरिक संचय से मुक्ति दिलाएगी। सच्चाई तक वैराग्य के माध्यम से नहीं पहुंचा जा सकता, वह किसी भी माध्यम से अप्राप्य है। उस तक पहुंचने के ये सब तरीके आसक्ति का एक रूप हैं, और वास्तविकता तक पहुंचने के लिए इन सब को ख़त्म होना होगा।

विचार के लिए मुल्ल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि “सच्चाई” किसी भी माध्यम से अप्राप्य है?” क्या अप्प कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने अपने अस्तित्व के लिए सभी भीतरी और बाहरी इच्छाओं से परे दिल की सादगी का अनुभव् क्या हो? आप उन सब शिक्षाओं का सामंजस्य कैसे करते हैं, जो इस सन्देश पर केन्दित हैं कि अपने अस्तिव को ढूँढना भी एक आसक्ति है जो हमें वास्तविकता में होने से दूर ले जाती है?

जि. कृष्णमूर्ति की “जीवन पर टीकाएँ” (Commentaries on Living) के कुछ अंश।
 

Excerpted from J. Krishnamurti's Commentaries on Living.


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