Becoming Master Artists


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माहिर कलाकार बन जाना
एकनाथ ईश्वरन द्वारा (१० जनवरी, २०१८)

हमें स्वयं को जैसे हम हैं वैसा स्वीकार करना ज़रूरी नहीं है। आनुवांशिक कोड या मस्तिष्क के जैव रसायन, ज्योतिषीय विन्यास या टैरो रीडिंग, बचपन के सदमे या पालन-पोषण - इनमें से कोई भी चीज़ हमारी क्षमता को सीमित नहीं कर सकती। बुद्ध समझाते हैं, "हम जो कुछ भी हैं, हमने जो कुछ सोचा है, उसका परिणाम हैं।" हमारे सोच के तरीके को ही बदल देने से, हम खुद को पूरी तरह से फिर से बना सकते हैं।

फिर हम माहिर कलाकार बन जाते हैं। एक सोनाटा लिखना या ज्ञानशील उपन्यास लिखना कोई छोटी बात नहीं है; हम उन महान संगीतकारों और लेखकों के ऋणी हैं जिन्होंने हमें मानव प्रकृति में सुंदरता और अंतर्दृष्टि दी है। लेकिन मैं पूरी तरह से तैयार की गई जिंदगी की खूबसूरती से सबसे अधिक प्रेरित होता हूं, जहां हर स्वार्थ कट चुका है और जो सोचा, महसूस किया, कहा जाता है और किया जाता है वो सब सामंजस्य में आ जाता है।

इस तरह के जीवन को बनाने में समय और निरंतर प्रयास लगता है। (ध्यान) की यही चुनौती है - और यही कारण है कि यह (ध्यान) संदेहास्पद व्यक्तित्व वाले लोगों को इतनी गहराई से आकर्षित कर सकता है, जो आज के तत्काल परिवर्तन के दावों को गंभीरता से ले ही नहीं सकते। वे जानते हैं कि आप "ज्ञान प्राप्ति सप्ताहांत" के कोर्स में भर्ती होकर पुराने चले आ रहे व्यवहार और आदतों को वैसे ही नहीं बदल सकते, जैसे कि एक पियानो के सामने बैठ कर मध्य सी को ढूँढ लेने के बाद बीथोवेन या चोपिन का संगीत नहीं बजाने लग सकते।

हममें से अधिकतर के लिए, सोचने, महसूस करने और उन पर काम करने की अनुबंधित (conditioning) आदतें एक शक्तिशाली नदी की तरह हमारे दिन के बीच से प्रवाहित होती हैं। जाहिर है, हम आम तौर पर आराम से बैठ जाते हैं और नीचे की ओर तैरते रहते हैं। जब क्रोध की एक नदी बढ़ती है, उदाहरण के लिए, यह बहुत आसान है, जाहिर तौर पर संतोषजनक, कि हम उसे खुद को उसके साथ बहाने देते हैं। बस इसके खिलाफ तैरने की कोशिश करो! आपके दाँत किटकिटाएंगे, आपकी श्वास मुश्किल से आएगी, आपके पाँव कमजोर हो जाएंगे। लेकिन आध्यात्मिक जीवन की आवश्यकता है कि हम ऐसा करें: हम अपनी कंडीशनिंग को उलटा करें और बहाव की विपरीत दिशा में तैरें, जैसे सैल्मन मछली अपने घर लौटती हैं।

भारत में, जब मानसून आते हैं, तो कई दिन के लिए बादलों से बारिश की बौछाड़ उमड़ती है, जिससे नदियों का पानी ऊपर चढ़ जाता हैं और उनमें बाढ़ आ जाती है। मेरे गांव के कई लड़के बहुत अच्छी तैराक थे और साहसी भी थे। हम उस उमड़ते पानी में छलांग लगाकर और दूर किनारे तक सीधे तैरने की कोशिश कर के खुद का इम्तिहान लेते थे। दूसरे किनारे पहुंचने की जूझ में एक घंटा या उससे अधिक समय लग जाता था, और फिर कुछ ही हीरो ठीक पॉइंट पर पहुंचते थे; हम में से ज्यादातर सैकड़ों गज दूर पहुंच जाते थे। लेकिन हर कोई उस चुनौती को पसंद करता था।

आप कह रहे होंगे, "मुझे नहीं लगता कि मैं ऐसा कर सकता हूं।" हर कोई ऐसा कर सकता है। यह हमारी प्रकृति है; हम यही करने करने के लिए पैदा हुए थे। इंसान होने के नाते, हम सभी के पास चुनने, बदलने, बढ़ने की क्षमता है।

प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं कि हम अपनी कंडीशनिंग को चुनौती देने के लिए पैदा हुए थे? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जहाँ आप अपनी कंडीशनिंग को उलट कर सके हों और प्रवाह की विपरीत दिशा में तैर सके हों? आपको अपनी कंडीशनिंग को चुनौती देने में खुशी महसूस करने में किस चीज़ से मदद मिलती है?

एकनाथ ईस्वरन द्वारा लिखित 'ध्यान' के उद्धरण
 

Excerpt from ‘Meditation’ by Eknath Easwaran


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