उद्देश्य में अर्थ को प्रवाहित होने देना
-- ब्रदऱ डेविड स्टाइंडल-रस्ट (१ फरवरी, २०१७)
केवल एक ऐसा समय जब हम मृत्यु को मिलाकर, किसी भी विषय में बात कर सकते हैं, तब होता है जब हम खुद को पहचान लेते हैं। और मेरे लिए यह एक बेनिदिक्तिन भिक्षु का तरीका है। सेंट बेनेडिक्ट के सिद्धांत में, मृत्यु की याद दिलाने वाली वस्तुएं हमेशा महत्वपूर्ण रही हैं, एक बात जो सेंट बेनेडिक्ट कहते हैं, "अच्छा काम करने के साधन" यानी मठ के दैनिक जीवन के लिए बुनियादी दृष्टिकोण यह है कि मृत्यु को हर समय अपनी आँखों के सामने रखा जाए। जब मैं पहली बार बेनिदिक्तिन नियम और परंपरा के संपर्क में आया, खास तौर पर यह वाक्य ऐसा था जिसने मुझे सबसे अधिक प्रभावित और आकर्षित किया। इसने मुझे अपने दैनिक जीवन में मौत के बारे में जागरूकता को शामिल करने की चुनौती दी, क्योंकि वास्तव में इसका यही अर्थ है। यह मुख्य रूप से अपने अंतिम समय को याद करने की साधना नहीं है, या मौत को एक भौतिक घटना के रूप देखने की; यह जीवन के हर पल को मौत के क्षितिज के सामने देखने की साधना है, और मौत की जागरूकता को हर पल में शामिल करने की चुनौती है जिससे हम पूरी तरह से सजीव हो जाते हैं।
मृत्यु का जीवन के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक होना ज़रूरी है, क्योंकि यह एक ऎसी घटना है जो कि जीवन के पूरे अर्थ पर प्रश्न सामने खड़ा क्र देती है। हम उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में लगे हो सकते हैं, जिम्मेवारियां निभाने में, काम पूरे करने में, और फ़िर मृत्यु की अद्भुत घटना हमारे पास आ जाती है - चाहे वो हमारी अंतिम मौत हो या उन कई मौतों में से एक जिसमें से हम रोज़ ब रोज़ गुज़रते हैं। और मृत्यु हमें इस तथ्य के मुकाबले में खड़ा कर देती है कि उद्देश्य पर्याप्त नहीं है। हम अर्थ के द्वारा जीते हैं। जब हम मौत के करीब आते हैं और सभी उद्देश्य हमारे हाथ से फ़िसल जाते हैं, जब हम फ़िर विशिष्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चीजों के साथ हेरफेर और उन पर नियंत्रण नहीं कर सकते, क्या हमारा जीवन तब भी सार्थक हो सकता है? हमारी अक्सर उद्देश्य की अर्थ के साथ समानता करने की प्रवृत्ति होती है, और जब उद्देश्य हमसे दूर कर दिया जाता है, तो हम बिना अर्थ के खड़े रह जाते हैं। तो यहां एक चुनौती है: कैसे, जब सभी उद्देश्य समाप्त हो जाते हैं, क्या यहां फिर भी अर्थ रह सकता है?
यह प्रश्न बताता है कि हमें मठ में मृत्यु को हमेशा अपनी आँखों के सामने रखने की सलाह (या चुनौती) क्यों दी जाती है। क्योंकि मठ का वास जीवन के प्रश्न का मौलिक रूप से सामना करने का एक तरीका है। इसमें आप उद्देश्य में नहीँ फंस सकते: इसके साथ कई उद्देश्य जुड़े हुए हैं, लेकिन वे सभी कम महत्व वाले हैं। एक साधु के रूप में आप पूरी तरह से निर्रथक हैं, और इसलिए आप अर्थ के इस सवाल से दूर नहीं कर भाग सकते।
यह भेद जो मैं उद्देश्य और अर्थ के बीच कर रहा हूँ उसे हमारी रोजमर्रा की भाषा और सोच में हमेशा बनाए नहीं रखा जाता। वास्तव में, हम अपने जीवन में काफी भ्रमों से बच सकते हैं अगर हम इस भेद पर ध्यान दें। इस बात को समझने में कम से कम चेतना की ज़रूरत है कि किसी उद्देश्य, एक ठोस कार्य, को पाने की कोशिश करने के लिए हमारा भीतरी रवैया, हमारे उस रवैये से बिलकुल अलग है जो हम तब बनाते हैं जब हमें कोई चीज़ खासतौर पर अर्थपूर्ण लगती है। उद्देश्यों के साथ, हमें सक्रिय और नियंत्रण में होना ज़रूरी है। जैसा कि कहते हैं, हम, “बागडोर संभालें,” “चीजों को अपने हाथों में लें,” और "मामलों को नियंत्रण के अधीन रखें,” और परिस्थितियों को ऐसे साधनों के रूप में प्रयोग करें जो आपके उद्देश्य को सफल होने में मदद करें। जिन मुहावरेदार अभिव्यक्तियों का हम उपयोग करते हैं वो लक्ष्य-उन्मुख, उपयोगी गतिविधि के लक्षण हैं, और संपूर्ण आधुनिक जीवन इस प्रकार उद्देश्य-उन्मुख हो जाता है। लेकिन जब हम अर्थ की बात करते हैं तो मामला अलग होता है । यहाँ इस्तेमाल करने की बात नहीं है, बल्कि अपने चारों ओर की दुनिया का आनंद लेने की बात है। उन मुहावरो को जिनका हम इस्तेमाल करते हैं जो अर्थ से संबंधित हैं, उनमें हम खुद को सक्रिय होने की बजाए अधिक निष्क्रिय ही दर्शाते हैं: “उसने मुझपर कुछ कर दिया,” “उसने मुझे बहुत गहराई से छुआ, ” "इसने मुझे द्रवित कर दिया।” बेशक, मैं उद्देश्य के खिलाफ अर्थ को भिड़ाना नहीं चाहता, या सक्रियता के खिलाफ निष्क्रियता को। यह केवल हमारे अति-सक्रिय, उद्देश्य से ग्रस्त समाज के संतुलन को ठीक करने की बात है। हम उद्देश्य और अर्थ में फर्क उन्हें जुदा करने के लिए नहीं करते, बल्कि उन्हें जोड़ने के लिए करते हैं। सक्रियता और निष्क्रियता को सच्ची अनुकूलता में जोड़ने के लिए हमारा लक्ष्य है अपनी उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में अर्थ को प्रवाहित होने देना।
मौत हमारी प्रतिक्रियाशीलता को अंतिम कसौटी पर कस देती है।
विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: अपनी उद्देश्यपूर्ण गतिविधियों में अर्थ को प्रवाहित होने देने से आप क्या समझते हैं? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब मृत्यु ने आपकी प्रतिक्रियाशीलता को अंतिम कसौटी पर कस दिया हो? आप अर्थ के बारे में सोचने के लिए मृत्यु को कैसे इस्तेमाल कर पाए हैं?
ब्रदऱ डेविड स्टाइंडल-रस्ट एक बेनिदिक्तिन भिक्षु हैं । आप उनके जीवन के बारे में और जानकारी “इस प्रोफाइल”, और gratefulness.org में पा सकते हैं। यह उद्धरण १९७७ के पैराबोला के अंक में प्रकाशित एक निबंध से लिया गया है।