Beauty of the Mosaic

Author
Rosalina Chai
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पच्चीकारी का सौंदर्य
-- रोसलिना चाइ द्वारा लिखित (२४ फ़रवरी, २०१६)

जब से मुझे याद है, मुझे पच्चीकारी बहुत ही अच्छी लगती हैं। मेरे सिर पर बढ़ते हुए सफेद बालों के साथ-साथ ये जागरूकता भी बढ़ी कि कैसे पच्चीकारी उपयुक्त रूप से मानवीय स्थिति का अनुभव करने और उसे समझने के लिए एक रूपक का काम कर सकती है।

पच्चीकारी जटिल भी होती है और साथ शानदार भी। और ठीक इसका टूटा-फूटापन ही है जो पच्चीकारी को उसकी नाजुक सुंदरता का आभास देता है - टाइलों के बीच की जगह भी उसकी सुंदरता की भाषा का उतना ही जटिल हिस्सा है जितनी की खुद पूरी पच्चीकारी। और क्या यही हमारी मानवता के विषय में भी सच नहीं है?

हालाँकि ऎसे असंख्य ख़िताब हमारे आस-पास हैं जो हमारे मौलिक टूटे-फूटेपन की ज़रूरत, शक्ति और सौंदर्य का गुणगान कर रहे हैं, फिरभी ज़्यादातर, अपने साथी मनुष्यों के साथ हमारी रोज़मर्रा की अंतःक्रिया अचेतन “ऐसा होना चाहिए” से प्रेरित होती हुए लगती है जो एक दूसरे से पूर्णता की मांग करती है। टूटे-फूटेपन के बारे में ऐसा क्या है जिसे हम इतना घिनौना समझते हैं?

तब क्या होगा जब हम इस बात को स्वीकार कर लेते हैं और खुद में समेट लेते हैं कि टूटा हुआ होना मानवता के अस्तित्व का एक अनिवार्य हिस्सा है? जब हम टूटेपन को ख़राब समझना बंद कर देंगे तो क्या होगा? टूटे-फूटे को ख़राब समझना बंद करने के लिए हमें क्या करना होगा? मैं एक निश्चितता की कल्पना कर सकती हूँ … अधिक शांति।

टूटे होने को स्वीकार करना और उसे गले लगाना और किसी और के टूटेपन को खुद को बेहतर महसूस करने के लिए इस्तेमाल करना एक ही बात नहीं है। बल्कि, यह हमारी सामूहिक मानवता की अभिस्वीकृति है। जब मैं अपने टुटेपन को स्वीकार करती हूँ, और खुद को उस टुटेपन की वजह से कठोरता से धिक्कारती नहीं, तो मैं अपने आप को दूसरों के प्रति और संवेदना अनुभव करने के लायक बनाती हूँ, चाहे मुझे इस बात का ज्ञान न हो कि उन्होंने किस प्रकार के टूटेपन का अनुभव किया है।

अंत में, पच्चीकारी की बहुत सी टाइलों के आपस में जुड़ने से ही उनकी सुंदरता की भाषा का अर्थ व्यक्त किया जाता है। अपने टूटेपन में अकेले रहना हमारा भाग्य नहीं है। हमें एक साथ आना ही था, ताकि सुंदरता का एक और रूप इस सामूहिक संस्था से जन्म ले सके।

आखिर में मैं आपको यह कहानी सुनाना चाहूंगी।

समय के शुरुआत और अंत में, सत्य एक सुंदर चमकता हुआ गोला था। एक दिन, वह गोला इस ब्रह्मांड में जितने सितारे हैं, उनसे भी अधिक अनगिनत टुकड़ों में टूटकर बिखर गया। ये टुकड़े आत्माएं बन गए। इस प्रकार प्रत्येक आत्मा ने सत्य के एक भाग का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन जीवन ने हस्तक्षेप किया, और कई आत्माओं ने यह मान लिया कि वो ही सत्य हैं, और इस कारण घृणा का जन्म हुआ। लेकिन कुछ आत्माओं ने इस स्मृति को पकड़े रखा, और उन आत्माओं को याद दिलाने का प्रयत्न किया जो इस बात को भूल चुकी थीं।

मैं इस कहानी के अंत के बारे में नहीं जानती क्योंकि वह अभी लिखा नहीं गया। लेकिन मुझे यह पता है कि जब सभी आत्माऐं फिरसे जुड़ जाएंगी, तो टुकड़ों के बीच की जगह वहां होगी जहां से प्रकाश चमकता है। और उस सत्य की सुंदरता फिर कोई और रूप धारण कर लेगी।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस धारणा से क्या समझते हैं कि अपने टूटेपन में अकेले रहना हमारा भाग्य नहीं था? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जहां आप सामुहिक पच्चीकारी के माध्यम से सुंदरता का जन्म होते देख पाए हों? “दुकड़ों के बीच की जगह” जिसमें से प्रकाश चमकता हो, उसे ढूंढने में ऐसा क्या है जो आपको मदद करता है?

(यह लेख) मूल रूप से इस साइट से (लिया गया है)।
 

Roslina Chai is an author, mother, and "seeker of beauty, curator of experiences, and holder of space."  She lives in Singapore, and the excerpt was originally taken from her blog.


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