मृत्यु जीवन का द्वार है
-- पॉल फ़्लाइश्मैन (२८ अक्टूबर, २०१५)
(संपादकों से नोट: यहाँ “बैठने” का अभिप्राय बैठ कर ध्यान करना है।)
बैठ कर ध्यान करने ने मुझे वो देखने और स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, जो भूमिका मृत्यु पहले से ही मेरे जीवन में निभा चुकी थी, और अब भी निभा रही है। हर प्राणी जानता है कि कुल मिलाकर उसमें होने वाले स्पंदनों की संख्या सीमित है। जब मैं बच्चा था तो मैं सोचता था: पैदा होने से पहले मैं कहां था? मरने के बाद मैं कहां होऊंगा ? हमेशा कितना समय है और वो कब ख़त्म होता है? इतिहास पढ़ने वाले हाई स्कूल के छात्र को यह मालूम है कि हर वीर मर चूका; मैंने किताबों में नक्शों पर साम्राज्यों के रंगों को लहरों की तरह इधर से उधर होते देखा। (खुद को नहीं) नश्वरता कानून नहीं है, यह मैं कहाँ पा सकता हूँ? मैं इससे जितना छुप सकता हूँ, मैं उससे छुपने की उतनी कोशिश करता हूँ, अपनी जवानी के पीछे ( झुर्रिया अभी से पड़ रही हैं, पहले आँखों के चारों और, बाल सफेद हो रहे हैं), और स्वास्थ्य के बीमे के पीछे, लेकिन छिपने का कोई स्थान भी काम नहीं आता।
हर दिन अंधेरे के साथ समाप्त होता है; काम आज ज़रूर पूरे हो जाने चाहिएं या फिर वो कभी नहीं होंगे। और, हंसी की बात तो ये है कि मेरी भूख-प्यास उड़ा देने की बजाए, मुझे “उबकाई” दिलाने की बजाए, (…) रात के घिरने का दर्द मुझे अपने जीवन को संजोए रखने में मदद करता है। क्या यह सबसे व्यापक मानवीय सोच और सलाह नहीं है? जो लकड़ी चीर रहा हूँ, ठीक उसकी दरार पर मैं अपने हथौड़े से चोट करने का यत्न करता हूँ। मैं जो पुस्तक पढता हूँ उसे सोच-समझ कर चुनता हूँ। मैं अपने बच्चे का ध्यान रखने और उसे प्यार करने तथा जंगल की उन पग्दड्डियों को जिन्हें मैं ठीक रखता हूँ, उनकी पुकार पर ध्यान देना अनिवार्य समझता हूँ। मैं दिन की शुरुआत में ध्यान के लिए बैठता हूँ और दिन गुज़र जाता है। एक और भोर होती है, लेकिन यह श्रृंखला सीमित है, इसलिए मैंने अपने मन में सोच लिया है कि मैं एक दिन का भी नागा नहीं करूँगा।
ध्यान करना मुझे उस मनोवैज्ञानिक तथ्य की ओर खींचता है कि मृत्यु जीवन का द्वार है। कोई शक्ति मुझे बचा नहीं सकती। क्योंकि मैं मौत के बारे जानता हूँ, और उससे डरता हूँ, इसलिए मैं जीने की ओर झुक जाता हूँ, एक जानवर की तरह, खुद ब खुद और प्रतिक्रिया में नहीं, न ही निष्क्रियता और निवेदन से, जैसे एक बच्चा जब नाटक करता है जैसे उसके पिता उसे कुछ करते देख रहे हैः, लेकिन अपने होश में किये चुनाव और निर्णय के साथ कि मेरे जीवन का प्रत्येक क्षणभंगुर पल कैसा हो। मैं जानता हूँ कि मेरी पंखुड़ियों एक अस्थिर चमक को घेरे हुए हैं। लेकिन बदले में यह बात ध्यान रखना ज़रूरी है कि एक साधारण सपने लेने वाला व्यक्ति कैसे लगातार उस सीमा का सामना करता है, सराहना की तालमापक , मौत।
मैं इसलिए ध्यान करता हूँ क्योंकि यह जानकारी कि मैं एक दिन मर जाऊंगा, मेरे जीवन को अच्छा बनाती है और उसकी परतें उतारती है, इसलिए मैं आगे बढ़कर अनुशासन और वो स्थिरता खोजता हूँ जो मुझे मृत्यु का ठीक से सामना करने के लिए आवश्यक हैं। जीवन को गले लगाने के लिए मुझे मौत के साथ हाथ मिलाना चाहिए। इस के लिए, मुझे ध्यान की जरूरत है। हर बार बैठ कर ध्यान करना बाहर की गतिविधियों के लिए मरना, ध्यान बंटाने वाली चीज़ों से छूटना, अग्रिम संतुष्टि की समाप्ति है। यह जीवन जैसा है, अभी है। किसी दिन यह कठिन ध्यान बहुत, बहुत काम आएगा। यह पहले से काम आ रहा है।
विचार के लिए कुछ प्रश्न: लेखक की धारणा, कि मृत्यु जीवन का द्वार है, से आप क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपने जीवन को गले लगाने के लिए मौत के साथ हाथ मिलाया हो? ऐसी कौनसी साधना है जो आपको मृत्यु की अनिवार्यता को स्वीकार करने और इस ज्ञान को इस्तेमाल करते हुए जीवन को गले लगाने में मदद करती है?
पॉल र. फ़्लाइश्मैन एक मनोचिकित्सक, विपाशना ध्यान के शिक्षक, और आठ पुस्तकों के लेखक हैं, उनमें से हाल ही में उन्होंने "विस्मय: विश्व कब और क्यों उज्ज्वल दिखाई देता है" लिखी है। यह लेख उनके निबंध, “मैं ध्यान क्यों करता हूँ” से लिया गया है।