Absurd Heroism

Author
Margaret Wheatley
29 words, 22K views, 23 comments

Image of the Weekबेतुकी बहादुरी
-- मार्गरेट वीटली (२० जनवरी, २०१६)

सिसिफस पर विचार करो। जैसा कि दोनों ग्रीक और रोमन पौराणिक कथाओं में वर्णित है, सिसिफस को देवताओं के द्वारा अनंत काल के लिए व्यर्थ और निराशाजनक श्रम का श्राप मिला था। वह एक चट्टान को एक पहाड़ की चोटी तक लुढ़का कर ले जाता, लेकिन फिर उसे अपने ही भार और गुरुत्वाकर्षण के प्राकृतिक बल से वापिस नीचे लुढ़कते देखता। वो फिर उसे ऊपर तक लुढ़काता ले जाता। हमेशा के लिए। फ्रांसीसी अस्तित्ववादी दार्शनिक अल्बर्ट कैमस ने बेतुकी वीरता और उसके द्वारा होने वाली निराशा पर “सिसिफस की कथा” नामक एक निबंध लिखा।

सिसिफस के पास कोई चारा नहीं था - उसे देवताओं ने ये सज़ा दी थी। लेकिन हमारे पास विकल्प है। हम यह देख सकते हैं कि अपनी बेतुकी वीरता की हम कितनी बड़ी कीमत चुका रहे हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि यह सब हम पर निर्भर है। मैंने सुना है कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी इन मुसीबतों के लिए कम से कम आंशिक जिम्मेदारी लेना चाहते हैं। कुछ धार्मिकतापूर्वक, जैसे कि हमें उत्तरदायित्व लेने के लिए उकसाते हुए, वो कहते हैं, "हमें इस बात की ज़िम्मेवारी लेना ज़रूरी कि यह हमारी बनायी हुई हैं” या “हमने इसे बनाया है, तो हम इसे बदल सकते हैं। “इस बनाए गए जिम्मेदारी स्वीकार करने की जरूरत है" "हमने इसे बनाया है, इसलिए हम इसे बदल सकते हैं।" नहीं, हमने ऐसा नहीं किया। और नही, हम ऐसा नहीं कर सकते। हमने असंख्य अन्य खिलाड़ियों और कारणों के साथ इसमें भाग लिया और उन सबमें से यह उभर के निकला। हम इसके लिए श्रेय नहीं ले सकते, हम अपने आप को दोषी नही ठहरा सकते और हम अपने आप पर परिवर्तन लाने का बोझ नहीं डाल सकते हैं। हम सिसिफस नहीं हैं, जिसे बेतुकी वीरता के भाग्य का श्राप मिला था।

अगर सिसिफस एक मुक्त कर्ता होता, तो उसने यह जान लिया होता कि गुरुत्वाकर्षण ही उसकी समस्या थी। हमें ध्यान देना चाहिए कि किसी चीज़ से बाहर निकलना एक ऐसी कठिनाई है जो उतनी ही अविवादित है जितना गुरुत्त्वाकर्षण का बल।
चलो, ये जो अत्युत्तम नई दुनिया उभर के आई है, हम उसका खुलकर सामना करें और अपनी चट्टान को उठकर नीचे रख दें - वो ऊर्जा को नष्ट करने वाला हमारा यह विश्वास कि हम इस दुनिया को बदल सकते हैं। चलो हम उन निराशा उतपन्न करने वाली विफलताओं के पहाड़ से दूर चलें और उसकी बजाए अपने सामने खड़े लोगों, अपने सहयोगियों, समुदायों और परिवारों पर ध्यान दें। चलो हम मिलकर उन मूल्यों के लिए काम करें जिन्हें हम महत्त्वपूर्ण समझते हैं, और ऐसे सफल मॉडल बनाने के बारे में चिता न करें जिससे और लोगों में बदलाव आ जाए। चलो हम अपने आप को ऐसा बनाने पर ध्यान दें कि हम औरों का ध्यान करने वाले, अच्छे इंसानों के छोटे से टापू बन जाएं, ठीक काम करें, जहां कर सकें, मदद करें, शांति और समझदारी बनाए रखें, ऐसे इंसान बनें जिन्होंने कोमल, सभ्य और बहादुर बनना सीख लिया है … जबकि वो अँधेरा सागर जो उभरा है, वह हमें चारों और से घेरे रखता है।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप “हम दुनिया को बदल सकते है, इस शक्ति का दमन करने वाले विचार” से निकलने वाली बेतुकी बहादुरी से क्या समझते है? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव सबसे बाँटना चाहेंगे जब आपने अपने उभरने को पहचाना हो और अपनी चट्टान को नीचे रख दिया हो? ऐसी कौनसी साधना है जो आपका ध्यान बेतुकी बहादुरी से हटाती है और उन मूल्यों की ओर लगाती है जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं?

मार्गरेट वीटली एक लेखक, दूरदर्शी और विचारक हैं। ऊपरी अंश उनकी सबसे नयी पुस्तक, "​सो फार फ्रॉम होम” (घर से इतना दूर)​ से लिया गया है।
 

Margaret Wheatley is an author, visionary and thinker.  The excerpt above comes from her most recent book, So Far From Home.


Add Your Reflection

23 Past Reflections