Awareness is Profound Interest

Author
J. Krishnamurti
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Image of the Weekजागरूकता गहन रुचि है
--जिद्दू कृष्णमूर्ति (०९/२३/२०१५)

जो इंसान अपने आप को सुधारना चाहता है, वो कभी जागरूक नहीं हो सकता, क्योंकि सुधार किसी चीज़ का तिरस्कार तथा किसी और परिणाम की उपलब्धि की ओर संकेत करता है; जबकि जागरूकता में बिना तिरस्कृति, बिना किसी चीज़ को नकारे या स्वीकार किये, केवल उसे देख पाना है। ऐसी जागरूकता बाहरी चीज़ों के साथ शुरू होती है, सजग रहना, चीज़ों और प्रकृति के साथ संपर्क रखना। सबसे पहले, एक के बारे में होने वाली चीज़ों की जागरूकता होती है, चीज़ों, प्रकृति और फिर लोगों के बारे में संवेदनशील होना, जिसका अर्थ है रिश्ते; फिर विचारों के बारे में जागरूकता बनती है। ये जागरूकता - चीज़ों, प्रकृति, लोगों और विचारों के प्रति संवेदनशील होना - अलग-अलग प्रक्रियाओं से नही, बल्कि एक एकात्मक प्रक्रिया से बने हैं।

ये हर चीज़ का एक निरंतर अवलोकन है, हर विचार, और भावना और कार्य का, जैसे-जैसे वे हमारे अंदर उठते हैं। क्योंकि जागरूकता निंदात्मक नहीं है, इसलिए कुछ इकट्ठा नहीं होता। हम तभी किसी चीज़ की निंदा करते हैं जब हमारे कोई मापदंड होते है, जिसका अर्थ है कि हमने अपने अंदर कुछ इकट्ठा कर रखा है और इसलिए हमें सुधार चाहिए। जागरूकता का अर्थ है अपनी गतिविधियों को, उस “मैं” का और लोगों, विचारों और चीज़ों के साथ सम्बन्ध को समझना।

वो जागरूकता एक पल पल में रहती है, और इसलिए इसका अभ्यास नहीं किया जा सकता। जब हम किसी चीज़ का अभ्यास करते हैं, तो वो एक आदत बन जाती है, और जागरूकता कोई आदत नहीं है। वो मन जो अभ्यस्त है, वो असंवेदनशील है, एक मन जो किसी काम को घिसे पिटे पुराने तरीकों से करता रहता है वो नीरस है, कठोर है; जबकि जागरूकता की मांग है निरंतर लचीलापन और सतर्कता।

यह मुश्किल नहीं है। जब हम किसी चीज़ में रूचि रखते हैं हम असल में ऐसा ही करते हैं, जैसे जब हम अपने बच्चे, पत्नी, अपने पौधों, पेड़ और पक्षियों को देखने में रूचि रखते हैं। हम बिना आलोचना किये, बिना पहचान बनाए, देखते हैं; इसलिए उस देखने में सम्पूर्ण समागम है: देखनेवाला और देखने की चीज़ दोनों में सम्पूर्ण समागम में हो जाते हैं। ऐसा तब होता है जब हम किसी चीज़ में गहराई से और पूर्णतया रूचि रखते हैं।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि सुधार चाहने में जागरूकता नामुमकिन है? क्या आप कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपने देखने वाले और देखने की चीज़ में समागम का अनुभव किया हो? आप आत्म-सुधार के अभ्यास और लेखक की उसकी आलोचना का आपस में सामंजस्य कैसे कर सकते हैं?

ऊपर दिया लेख “चुनावरहित जागरूकता १” (चोइसेलेस अवेयरनेस १) से लिया गया है, जहां जिद्दू कृष्णमूर्ति इस प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं, “आत्मनिरीक्षण और जागरूकता के बीच क्या अंतर है?"
 

Reading above is excerpted from 'Choiceless Awareness 1', where Jiddu Krishnamurti answers the question, "What is the difference between introspection and awareness?"


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