Choosing Suffering over Safety

Author
Bonnie Rose
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सुरक्षा की बजाए दुख का चयन
--बानी रोज़ (१९ अगस्त, २०१५)

“क्या तुम चल सकती हो, डिअर?” मैं ये शब्द अपने कुत्ते स्टेला से कहती हूँ, जो मरणवस्था में है।” नाश्ते का समय है और अगर वो अपने बिस्तर से रसोई तक चल कर आ जाती है, तो शायद मुझे कोई संकेत मिल जाए। शायद वो ठीक हो जाएगी। इसलिए मैं उससे फिर पूछती हूँ, “क्या तुम चल सकती हो?”

जैसे मैं ये पूछती हूँ, तो मुझे पिछले ग्यारह वर्षों की यादें ताज़ा हो जाती हैं जब में मुड़-तुड़ कर सोती ताकि कुत्ते को अच्छी नींद मिल सके। मुझे वो सुबहें याद हैं, वो कैसे सुबह-सुबह उठ जाती और जैसे वो किसी जंगली बटेर को नींद की झाड़ से निकाल डालती वैसे ही मुझे जगाने के लिए वो अपने पंजे मेरे बिस्तर पर पटकती। अब नौ बज चुके हैं और वो बिस्तर के कोने में बैठी आह भर रही है, उसकी आँखें सतर्क हैं और उसकी साँस ज़ोरों से चल रही है।

जब मेरी माँ मृत्युशय्या पर थीं, तब मैंने वो प्रश्न नहीं उठाया था। मैंने कोई सवाल नहीं किया था। मैं वो जवाब जानना ही नहीं चाहती थी क्योंकि वो जवाब सब कुछ बदल देता। हमने कैंसर के बारे में कोई बात नहीं की - कि वो कैसे मेरी माँ की हड्डियों और दूसरे अंगों को ख़त्म कर रहा था, वो कैसे मेरे सबसे प्रिय व्यक्ति को मुझसे चुरा लेने का प्लैन बना रहा था। हमने प्यार और हानि या उनकी उस चाह की कि मुझे अच्छा जीवन मिले, इस सब के बारे में कोई बात नहीं की। हमने ऐसा कुछ नहीं कहा कि कैसे मृत्यु उनकी खुशियों का खात्मा कर देगी या कैसे मृत्यु मुझसे थैंक्सगिविंग की छुट्टी में कॉलेज से घर आने और मुझसे मेरे जीवन के बारे में सब कुछ सुनने के किए उत्सुक, उनका रसोई की खिड़की से दिखता चेहरा देखने की खुशी छीन लेगी। तो हमने इन सब चीज़ों के बारे में कोई बात नहीं की।

मैं पत्थर बन गयी थी। हम अपने ब्रायरक्लिफ़ के घर में एक -साथ किसी समय में सुरक्षित रहने वाले, उस आखिरी सुबह मेरी माँ कुछ बोल नहीं सकीं। वो मुझसे कुछ चाहती थीं। वो मेरी मदद चाह रही थीं। मैं सत्रह साल की थी और मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या करना चाहिए। उस कमरे में कुछ अशुभ था। मैं इतनी भयभीत थी कि अपना डर भी नहीं दिखा सकती थी। मैं सबकुछ ठीक कर देना चाहती थी। मुझे नहीं पता था कि मुझे क्या करना चाहिए।

तो मैंने उनका हाथ थाम लिया, अवर्णनीय मौत के सामने बेसुध, बेआवाज़ मेरे चेहरे पर से आंसू बह रहे थे। उन्होंने मेरी ओर देखा और कहा “धन्यवाद।” ३६ घंटे बाद वो नहीं रहीं। वो मेरे लिए उनके आखिरी शब्द थे।

किसी तरह, सालों से जीवन, चर्च, प्रियजनों की मृत्यु, खो गए पालतू प्राणी और खो गए प्यार के माध्यम से, मैं ये पूछना सीख रही हूँ, “क्या तुम चल सकते हो?” मैं दूसरे कठिन प्रश्न पूछना और स्थिर रहना और उनके उत्तर के साथ मौजूद रहना भी सीख रही हूँ। मैं सीख रही हूँ कि कष्ट कैसे झेलना है।

मैंने दुःख झेलने की ओर अपने पहले अस्थायी कदम शैडोलैंड में लिए, जो एक ब्रॉडवे का प्रस्तुतीकरण था, जिसमें तुक्के और जान-पहचान के कारण मुझे आठ हफ्ते के लिए प्रमुख पात्र के विकल्प का पात्र मिल गया। ये नाटक सी. एस. लुइस के ज्ञान से अनुभव में बदलाव के बारे में है। जब लुइस बालक ही थे, उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। वो कभी रोए नहीं और उन्होंने कभी अपने आप को उस दुःख को महसूस नहीं करने दिया। बाद में जीवन में जब वो एक अविवाहित चिड़चिड़े प्रोफेसर थे, तो वो अपनी प्रेमिका जॉय ग्रीषम से मिले। मिलने और शादी होने के के बहुत जल्द ही उनकी पत्नी को कैंसर हो गया और उनकी मृत्यु हो गयी। जब जॉय की मृत्यु हुई, तो उन्होंने इस दुःख को अपने ऊपर हावी होने दिया।

उन्होंने कहा, “बालक ने सुरक्षा को चुना, आदमी ने दुःख का चयन किया।”

हर हफ्ते में आठ शो, मंच के पीछे बैठे टीवी मॉनिटर से मैं ये शब्द सुनती रही: बालक ने सुरक्षा को चुना, आदमी ने दुःख का चयन किया।

और अब, हर दिन, मैं सुरक्षा और दुःख में से चयन करती हूँ। क्या जो होगा, मुझमें उसे झेलने की हिम्मत होगी और क्या मैं अपने मन को इस कमरे में रख पाऊँगी?

क्योंकि मैं नहीं जानती कि मैं चल सकती हूँ या नहीं। मैं नहीं जानती कि मैं खड़ी हो सकती हूँ या नहीं। ऐसे कई दिन होते हैं जब मैं इंसान होने की वजह से होने वाले दुखों - हानि, मृत्यु, लगातार होने वाले बदलाव के रोष - का मुकाबला करते हुए इस पृथ्वी रूपी मंच पर लडखडाती हुई चलती हूँ।

लेकिन कभी-कभी दुःख, दुःख नहीं लगता।

स्टैला के साथ बिताए वो आखिरी कुछ दिन, उन्हें मैं ख़ुशी-खुशी फिरसे झेलने को तैयार हूँ। जब उसने सांस छोड़ी, उसे थामे रख पाना, मेरे लिए गर्व की बात है। उसकी ज़रूरतों पर ज़्यादा ध्यान दे पाना मेरे लिए खुशी की बात थी। उससे ये पूछना, “क्या तुम चल सकती हो?” और फिर जो भी सच्चाई थी, उसे स्वीकार कर पाना, मेरे लिए खुशी की बात थी। उसे मन से प्यार कर पाना मेरे लिए खुशी की बात थी, और ये समझ पाना कि प्यार, प्यार है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो सिर्फ एक कुत्ता है, और मृत्यु कभी ऐसे प्यार को ख़त्म नहीं कर सकती।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप सुरक्षा की बजाए दुःख को चुनने से क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपको ऐसे चयन का आभास हुआ हो? ऐसी कौनसी साधना है जो आपको दुःख के अनुभव में खुशी देखने में मदद करती है?

बानी रोज़ वेंचुरा सेंटर फॉर स्पिरिचुअल लिविंग में पादरी हैं। ऊपरी लेख उनके ब्लॉग में से लिया गया है।
 

Bonnie Rose is a minister with Ventura's Center for Spiritual Living. Above reading was excerpted from her blog.


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