जीवन की भाषा की ओर वापिस आना
-- अनत वॉन-ली ( ४ मार्च, २०१५)
हम हमेशा यह नहीं जानते कि वो क्या है या उसे शब्दों में कैसे व्यक्त करें, लेकिन हमारे मन की गहराई में एक लालसा है, अपने जीवन की सच्ची राह पर चलने की लालसा। वो राह जो हमारे व्यक्तित्व से नहीं उभरती, बल्कि हमारे अंदर के उस भाग से निकलती है जो उस बड़ी सम्पूर्णता से जुड़ा है, जिसे अगर हम पहचान लें तो जीवन में एकदम अलग तरह के अनुभव की राह खुल जाती है। उस नए क्षितिज की तरह जो हमारे सामने खुल जाता है, वह राह भी हमें नयी संभावनाएं देती है कि हम इस जीवन को नए तरीके से देख पाएं, अनुभव कर पाएं और उससे जुड़ पाएं। वो राह जो हमें अलग और गहरे तरीके से जीवन में भाग लेने में मदद करती है, उस महान और उभरती सम्पूर्णता की चेतना के साथ, जिसका हम हिस्सा हैं।
लेकिन अगर हम इसे एक बार फिर देखें तो इस नए प्रकाश की उत्पत्ति, सर्दी में जैसे एक नयी शुरुआत, प्रकाश और अन्धकार के रहस्य का एक भाग है जिसका हम हमेशा से हिस्सा रहे हैं। तो यद्यपि ये एक चक्कर का अंत मालूम होता है, लेकिन हम असल में उस रहस्य में हिस्सा ले रहे हैं जिसे पिछले हज़ारों सालों के लिखित इतिहास में हर सभ्यता ने उत्कृष्ट माना है।
मैं इसे अस्तित्व में भाग लेना समझती हूँ।
अधिक चेतना से भाग लेने की इस आवश्यकता से मेरे अंदर एक बीज का चित्र उठता है और ये प्रश्न कि आज की संस्कृति में, हमारा आधार क्या है? हम एक नए बीज, एक नए विकास की तरह नयी शुरुआत करना चाहते हैं। बीज की शक्ति का अनुमान लगाना असम्भव है। उसके अंदर समय, ऋतुओं की लय तथा जन्म और मरण के रहस्य छुपे हैं। उसमें पुरुष और प्रकृति दोनों के गुण होते हैं जिनमें में आपस में बराबर क्रियात्मक संवाद चलता रहता है। प्रकृति के अँधियारे गर्भ से पुरुष के बल का जन्म होता है और वो प्रकाश की ओर अंकुरित होता है। प्रकाश और अन्धकार का निरंतर नाता है। बीज केंद्र और मंडल दोनों ही है, हमें जीवन के पावन स्वरूप, सृष्टि की आपस में जुडी हुए भाषा, एकत्व का गान बार-बार हमें सुनाता हुआ हमें यह याद रखने के लिए उजागर करता है कि हम भी मूल सम्पूर्णता में हिस्सा ले रहे हैं।
जब हमें इसका अहसास होने लगता है तो हमारे अंदर बहुत रहस्य्मयी प्रक्रिया जागृत हो जाती है। हम अस्तित्व की इस महान पहेली में भाग लेना शुरू कर देते हैं जो हमारे जीवन का केंद्र है। हमें ये ज्ञान होने लगता है कि हम एक बड़ी महान लय तथा एक और भी बड़ी पूर्णता की सच्चाई में बद्ध हैं जो एक समय पर हर एक व्यक्ति के लिए अद्वित्तीय है। अगर, और जब हम अपने जीवन को इस चेतना से जीने लगेंगे, मैं सोचती हूँ कि क्या नये वर्ष के अर्थ के बारे में हमारा दृष्टिकोण अपने साथ एक अलग ज्ञान ले कर आएगा, ऐसा ज्ञान जो हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए बहुत आवश्यक है, जो हमारे मूल के बारे में हमें एक नयी अनुभूति देगा।
अब अलगाव से नही, बल्कि पावन समन्वय से ऐसी चेतना की ओर लौटना जीवन की भाषा की ओर लौटना है। जब हम इस चेतना को अपने शरीर में देखते हैं तो हम इस धरती और जगत में पूरी तरह भागीदार बन जाते हैं - उस क्षण में किसी चीज़ को अपनी गुणवत्ता के हिसाब से जीने का मौका मिल जाता है। हमें याद रहता है। जो याद रहता है वो जीवित रहता है। जब इस चेतना को हम अपने हृदय में रखते हैं, हम स्वाभाविक ही उसे जीवन को वापिस भेंट दे देते हैं। ये न ही जीवन को नया अर्थ देता है, बल्कि एक बीज की तरह, उसमें नए प्राण भर देता है। फिर हम न केवल अपने जीवन के रहस्य में भागीदार बनते हैं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के रहस्य में भी।
विचार के लिए मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते है : “ एक बड़ी सम्पूर्णता की सच्चाई जो एक ही समय पर हम में से हर एक व्यक्ति के लिए अद्वित्तीय है?” क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव हम सबसे बाँट सकते हैं जब आप एक पावन समन्वय के स्थान से अपने जीवन की भाषा पर वापिस आ गए हों? आपका असल में आधार कहां है?
अनत वॉन-ली १९७३ से नक्षबंदी सूफी पंथ की अनुयायी रही हैं। बहुत वर्षों से वो सूफी परम्परा में समूहों और स्वप्नों के साथ काम कर रही हैं, जो गहन प्राकृतिक तरीके से आत्मा की आवाज़ सुनने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है। 2003 में वे जनीवा में पैलैस दे नेशंस (यू एन) में महिलाओं के लिए पहले विश्व शांति में पहल सम्मेलन में एक प्रतिनिधि थीं। उन्होंने २००८ में जयपुर, भारत में आयोजित 'स्त्रियों के लिए रास्ता बनाना”; महिला आध्यात्मिक नेताओं की एक सभा में भी प्रस्तुति दी; स्त्रीत्व के फिर उभरने के इस पल की आवश्यकता और तत्कालीनता को समझते हुए, उन्होने अपने पति, लेवलिन वॉन-ली द्वारा लिखित पावन स्त्रीत्व के विषय पर लेखनों को संकलित और सम्पादित किया, जो,” सत्रीत्व का लौटना और विश्व आत्मा” नामक पुस्तक के रूप में सामने आयी है।