Working With Soil, Attending To Soul

Author
Gunilla Norris
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Image of the Weekमिट्टी के साथ काम करते हुए, मन का ध्यान करना

- गुनीला नॉरिस (२१ जनवरी, २०१५)


एक बगीचा हमारे अंदर समा जाता है। अगर हम वहां कुछ हासिल करने या कुछ तोड़ने के लिए जाते हैं, तो वह बगीचा शीघ्र ही एक बोझ बन जाता है। अगर हम यह उम्मीदें रखें कि चाहे कुछ भी हो जाए, बगीचा हमेशा दिखने में अच्छा लगे या वहां हमेशा कुछ उगता रहे, तो हम बहुत जल्दी थक जाएंगे। बगीचा वास्तव में वह जगह है जिसमें हम अपने आप को पूरी तरह से प्रकट कर सकते हैं। यह बात किसी भी गंभीर चिंतन पर भी लागू होती है। हम इसके द्वारा रूपांतरित हो जाते हैं। इसके द्वारा हम तुच्छ और प्रकाशित हो जाते हैं। यहाँ हमें धरती के साथ अपने पुराने सबंध, अपने भीतर की स्वतंत्रता और उस पवित्रता का अनुभव हो सकता है, जो हमारे अस्तित्व का आधार है।

"मेरे लिए बागवानी एक ऐसी प्रक्रिया है जो मुझे पूरी तरह संलग्न (engaged) होने का आमंत्रण देती है। यह चीज़ों को अपने नियंत्रण से मुक्त करने का निरंतर अभ्यास भी है, क्योंकि यहां ऐसी कितनी चीज़ें हैं जिनपर मेरा कोई नियंत्रण नहीं है। हैरत की बात है कि यह द्विविधता एक खुशी पैदा करती है जो अस्थायित्व को अपनाती है और अदृश्य में शरण पाती है।

"बागवानी हमारे जीवन को अन्न और फूल तथा हमारी आत्मा को तृप्ति देती है। मैं एक परिपूर्ण बाग़ की बात नहीं कर रही हूँ। हमारा बाग़ निश्चित रूप से ऐसा नहीं है! यहां झाड़-झंकार भी उतने ही खुश हैं जितने कि फूल। झाड़ियों और घनी होती जाती हैं उन्हें छंटाई की ज़रूरत है। जो एक खूबसूरत बगीचे की प्लेन की तरह शुरू होता है, समय के साथ बहुत अव्यवस्थित हो जाता है। गुज़रते वर्षों के साथ हमारे बगीचे में भी कहीं कुछ और कहीं कुछ उग गया है, और देखभाल करने के लिए हमेशा बहुत बड़ा लगता है।

"शुरुआत से ही यह बाग़ ऐसा नहीं है जिसका डिज़ाइन मैंने बनाया हो। इसका डिज़ाइन किसी और ने बनाया, और उससे पहले यह सिर्फ एक मैदान जैसा था। यहां रहने के लिये आने पर मैंने वही विरासत में पाया जो था, उसी तरह जैसे मैंने अपने माता-पिता, भाई-बहन, और इतिहास में एक खास समय को विरासत में पाया। जो चीज़ें हमें मिलती हैं हम उन्हीं से काम चलाते हैं। वही असली बगीचा है। मैं यहां की किसी चीज़ पर दावा नहीं कर सकती। मैं केवल इस बगीचे में उपस्थित हो सकती हूँ, इसका ध्यान कर सकती हूँ और उसे और बढ़ा सकती हूँ। क्या हम सब केवल वही नहीं कर रहे, जो ज़िंदगी हमसे करवा रही है?[…]

“अपने बाग़ में जब मैं खोदती हूँ, तो साथ ही अंदर की मिट्टी की जुताई भी करती हूँ। मेरा बाग़ एक ज़िम्मेदारी का और बेपरवाही का स्थान है, अभिमान की और विनम्रता की जगह है। यह ध्यान और गहरी निःशब्दता का स्थान है - चिंतन की जगह। और इसलिए समय के साथ-साथ मेरे लिए यह अनुग्रह (grace)की एक जगह बन गया है।

"मैं जो विशेष इंसान हूँ, मैं उसी तरह अनुभव करती हूँ। इसमें मेरी कोई मर्ज़ी नहीं चलती, लेकिन मुझे लगता है कि तुलना में मैं ज़्यादातर और लोगों जैसी ही हूँ, और मिट्टी के साथ काम करते समय जो मैं महसूस करती हूँ, वही और लोग भी करते होंगे। मैं विशवास करना चाहती हूँ कि इस जगह के लिए श्रृद्धा और अपनी कमियों के बारे में जानकारी होने से, मैं और अधिक मौजूद रह सकती हूँ और धरती के अपने इस कोने की बेहतर प्रबंधक बन सकती हूँ ।

प्रतिबिंब के लिए मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि बाग़ एक ज़िम्मेदारी का और बेपरवाही का स्थान है, अभिमान की और विनम्रता की जगह है? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बाँट सकते हैं जब अपको अपने माली होने की भूमिका का अहसास हुआ हो? ऐसी कौन सी जगहें हैं जो आपके लिए बगीचे का काम करती हैं, जहां आप अपनी अंदर की मिट्टी की जुताई करते हैं।

गुनीला नॉरिस मिस्टिक, कनैटिकट में रहती हैं, जहां वो एक लेखक, ध्यान शिक्षक, और मनोचिकित्सक के रूप में निजी प्रैक्टिस चलाती हैं। यह लेख उनकी किताब "एक आध्यात्मिक बगीचा - मिट्टी के साथ काम करते हुए, मन का ध्यान करना" (ए मिस्टिक गार्डन - वर्किंग विद सोइल, अटेंडिंग टू सोल) से उद्धृत किया गया है।
 

Gunilla Norris lives in Mystic, Connecticut, where she works as a writer, meditation teacher, and psychotherapist in private practice. This piece is excerpted from her book A Mystic Garden: Working With Soil, Attending To Soul.


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