The World Also Has a Soul

Author
David Whyte
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Image of the Weekइस दुनिया की भी आत्मा है
- डेविड वाइट
- ७ मई, २०१४

"सभी संगठनों के हर संघर्ष के केंद्र में एक मूल भ्रम है। एक ऐसा मूल भ्रम जो हमारी अपने बारे में समझ को संकरा कर देता है तथा सन्गठन से परे जो बड़ी दुनिया है, उसे अनदेखा कर देता है। यह एक ऐसी दुनिया है जो हमें अपनी व्यक्तिगत नियति के बारे में बता सकती है, लेकिन यह एक ऐसी दुनिया भी है जिसे पूरी तरह से जांचने की इच्छा और समय को हमने खो दिया है। उस बड़ी दुनिया को अनदेखा करने की कोशिश करते हुए, हम इस इमारत में जहां हम काम करते हैँ, उसके तंग गलियारों के बीच अपनी छोटी सी पहचान बना लेते हैं। अपने काम को महान नज़रिये से देखते हुए, जो कि हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, बजाऐ उसमें जान और जीवन शक्ति डालने के, हम अपने सपनोँ और इच्छाओँ को दबने देते हैं, और उन्हें संगठन के सपनों और इच्छाओं से बदल देते हैं, और फ़िर हैरान होते हैं कि संगठन हमारे जीवन पर हावी कैसे हो गया। "

"हमारे व्यक्तिगत जीवन में आत्मा के संरक्षण के लिए पहला कदम है यह स्वीकार करना कि इस दुनिया की भी एक आत्मा है, और वह किसी न किसी तरह हमारे काम और भाग्य में हिस्सा ले रही है। इस दुनिया में एक पवित्र भिन्नता है जो कि असाधारण तौर पर ह्मारी मददगार है क्योंकि वह हमसे अलग है; यह हमारी मानव चिंताओं और व्यस्तताओं से परिभाषित नहीं है, और यह कभी होगा भी
नहीं। इसका हमारी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के बारे में चिंता करने से इंकार करना हम पर इसकी बहुत दया है; यह अपने आप को एक अलग किस्म के पोषण के लिए संभाल कर रखती है, वो पोषण जिस पर हम तब पहुँचते हैँ जब हम आदतन अपनी चिंता करना छोडने और हमें थका देने वाली, खुद की अहमियत को देखने की प्रवृति से हट कर देखने को तैयार हो जाते हैं। जैसे कि कवि डेविड इग्नाटो खुद को याद दिलाते हैं:
“मुझे एक पहाड़ को देखकर
संतुष्ट होना चाहिए
कि वो असल में क्या है
और मेरे जीवन के एक मत के रूप में नहीं

"जब हम एक पहाड़ को सिर्फ़ देखने के लिए देखते हैं तो ज़िंदगी कुछ इस तरह खुल जाती है जिसकी व्याख्या किसी कविता की अलौकिक चमक या किसी खास कहानी में खुद को भुला देने की शक्ति द्वारा ही की जा सकती है। खुद को भुला देने की शक्ति ही प्रत्यक्ष रूप से महसूस कर पाने का सार है। फिर हम अपने अनुभव को सिर्फ इसलिए उपयोगी नहीँ समझते कि उससे हमेँ किसी और से क्या मिल सकता है, या हम कहीं और जल्दी से कैसे पहुंच सकते हैं, बल्कि हम उस अनुभव को उस मूल पैमाने की तरह समझते हैं जिससे हमारे व्यक्तित्व और जिस अजीब तरीके से हमारा व्यकतित्व और चीज़ों पर निर्भर करता हैं, उसे तोला जा सके। ऐसे अनुभव में कहीं और जाने की ज़रुरत नहीँ हैं क्योंकि यह परस्पर निर्भरता का अनुभव अपने आप में संपूर्ण है। यह अपनेपन का अनुभव उस मूल भूंख को मिटा देता है जो हमारे आत्मिक जीवन के बीचों-बीच रहती है; इसमें सुखप्रद और उग्र दोनों किस्म के गुण मौज़ूद होते हैं, यह आसान तरीका नहीं है।

अपने अनुभव की ओर पहले कमज़ोर कदम उठाना, चाहे शुरूआत मे वो कितने ही छोटे या छिपे हुए क्यों न हों, हमें और उदार जीवन की ओर ले जाता है, जहां जो हमेँ देना है उसका महत्त्व उतना ही बड़ा है जितना उसका जो हम पाते हैं। हम इस सीमित दुनिया से असीमित हद तक सोखने की कोशिश बन्द कर देते हैं और यह सीखना शुरू करते हैं कि ऐसी ज़िंदगी जीने के लिए जो इस दुनिया की आत्मा को मान देती है, हमें कितनी कम चीजोँ की ज़रूरत है। हम देखते हैं कि कई मायनों में हमारी दुनिया भागीदार की तरह काम आती है, कभी सहायक, कभी भयानक, लेकिन हमेशा अपनी जरूरतों के बारे में ईमानदार रहती है और अपने उदाहरण से हमेँ अपनोँ की ओर खींचती है।

विचार के लिए कुछ मूल प्रश्न: आप इस बात से क्या समझते हैं कि इस दुनिया की भी आत्मा है? क्या आप अपना कोई व्यक्तिगत अनुभव बांटना चाहेंगे जब आपने दुनिया की आत्मा को महसूस किया हो, कि वो आपके जीवन की भागीदार है? हम अपनी जरूरतों के बारे में ईमानदार रहने का अभ्यास कैसे कर सकते हैं?


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