“यह दुनिया संपूर्ण है”
-स्वामी विवेकानंद के द्वारा
क्या यह कहना ईश्वर की निंदा करने जैसा नहीं है कि दुनिया को हमारी मदद की ज़रूरत है? हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि दुनिया में बहुत दुख है; इसलिए, दूसरों की मदद करना ऐसी सबसे अच्छी बात है जो हम कर सकते हैं, हालाँकि एक समय के बाद इस रास्ते पर चलते चलते हम पाएंगे कि दूसरों की मदद करना, असल में खुद की मदद करना ही है। […]
जीवन अच्छा या बुरा होता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस मनःस्थिति से देखते हैं, जीवन अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं है। अग्नि अपने आप में न तो अच्छी है और न ही बुरी। जब यह हमें गर्म रखती है तो हम कहते हैं, "आग कितनी सुंदर है!" जब यह हमारी उंगलियाँ जला देती है, तो हम इसे दोष देते हैं। फिर भी, अपने आप में यह न तो अच्छी है और न ही बुरी। हम इसका जैसा उपयोग करते हैं, यह हमारे अंदर वैसी अच्छे या बुरे की भावना को जन्म देती करती है; ऐसा ही यह संसार भी है। यह संपूर्ण है। संपूर्णता का अर्थ है कि यह अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है। हम सभी इस बात पर पूरी तरह से भरोसा कर सकते हैं कि यह हमारे बिना भी खूबसूरती से चलता रहेगा, और हमें इसे मदद करने की इच्छा से अपना सिर खपाने की आवश्यकता नहीं है।
फिर भी हमें भलाई करनी चाहिए; भलाई करने की इच्छा हमारी सर्वोच्च प्रेरक शक्ति है, अगर हम हमेशा यह समझते हैं कि दूसरों की मदद करना एक सौभाग्य है। […]
पहले हमें यह जानना होगा कि मोह के जाल में फँसे बिना कैसे काम करना है, तब हम कट्टर नहीं बनेंगे। जब हम जान लेंगे कि यह संसार कुत्ते की घुंघराले पूँछ के समान है और कभी सीधा नहीं हो सकता, तब हम कट्टर नहीं बनेंगे। यदि संसार में कट्टरता न होती, तो यह आज की तुलना में कहीं अधिक प्रगति करता। यह सोचना भूल है कि कट्टरता मानवजाति की प्रगति में सहायक हो सकती है। इसके विपरीत, यह घृणा और क्रोध उत्पन्न करने वाला, लोगों को आपस में लड़ाने वाला और उन्हें असहानुभूतिपूर्ण बनाने वाला एक अवरोधक तत्व है। हम सोचते हैं कि हम जो कुछ भी करते हैं या जो हमारे पास है, वह संसार में सर्वश्रेष्ठ है, और जो हम नहीं करते या हमारे पास नहीं है, उसका कोई मूल्य नहीं है। इसलिए, जब भी आपमें कट्टर बनने की प्रवृत्ति हो, तो कुत्ते की घुंघराले पूँछ का उदाहरण हमेशा याद रखें। आपको संसार के बारे में चिंता करने या खुद को परेशान करने की आवश्यकता नहीं है; यह आपके बिना भी चलता रहेगा। जब आप कट्टरता से दूर रहेंगे, तभी आप अच्छा काम कर पाएँगे। वह संतुलित सोच वाला, शांत, विवेकशील, धैर्यवान, सहानुभूतिपूर्ण और प्रेमपूर्ण व्यक्ति ही है जो अच्छा काम करता है और इस प्रकार अपना भला करता है।
मनन के लिए मूल प्रश्न -
1 - आप इस विरोधाभास को कैसे स्वीकार करते हैं कि जीवन संपूर्ण है और फिर भी दूसरों की भलाई करना ही हमारी सर्वोच्च प्रेरणा शक्ति है ?
2- कोई ऐसा अनुभव साझा करें जिसमें परिणामों के प्रति मोह ने दूसरों की सेवा करते समय आपके लिए दुख पैदा किया हो या कि ठीक इसके विपरीत का अनुभव जब आपने परिणामों के प्रति मोह न रखते हुए दूसरों की सेवा की हो ।
3- कट्टरता आपके लिए क्या मायने रखती है ?