Seeing Is Not Thinking

Author
Jeanne de Salzmann
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Image of the Weekदेखना सोचना नहीं है
- जीन द साल्ज़मान द्वारा (२५ अक्टूबर, २०१७)

सवाल यह नहीं है कि क्या करना है लेकिन कैसे देखना है। देखना सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है - देखने का काम। मुझे यह एहसास होना ज़रूरी है कि यह वास्तव में एक काम है, एक ऐसी क्रिया जो कोई बिलकुल नई चीज लाती है, एक नई दृष्टि, निश्चितता और ज्ञान की संभावना। यह संभावना इस काम के दौरान ही प्रकट होती है और जैसे ही देखना बंद हो जाता है, यह ग़ायब हो जाती है। देखने के इस कार्य में ही मुझे एक निश्चित आज़ादी मिलेगी।

जब तक मैंने दिमाग की प्रकृति और चाल नहीं देखे, तब तक मेरा यह मानना ​​व्यर्थ है कि मैं इससे मुक्त हो सकती हूँ । मैं अपने यांत्रिक विचारों की दास हूँ। यह सच है। यह स्वयं विचार नहीं हैें जो मुझे गुलाम बनाते हैं, बल्कि उनके साथ मेरा लगाव है। यह समझने के लिए, मुझे यह जानने से पहले कि गुलामी क्या है, उससे मुक्त होने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। मुझे बिना किसी ज्ञात चीज़ की मदद के, शब्दों और विचारों के भ्रम और मेरे विचारने वाले दिमाग के अकेले और खाली रहने के भय को देखना ज़रूरी है। इस गुलामी को एक तथ्य के रूप में जीने की आवश्यकता है, पल-पल के बाद, इससे दूर भागे बिना। तब मैं देखने के एक नये तरीके का अनुभव करना शुरू करूँगी। क्या मैं एक धोखेबाज के पीछे छिपी, मैं कौन हूँ, यह न जानने को स्वीकार सकती हूँ? क्या मैं अपना नाम नहीं जानना स्वीकार सकती हूँ? देखना सोचने से नहीं निकलता।

यह उस पल के सदमे से आता है जब सच जानने की एक ज़रूरत को महसूस करते हुए, मुझे अचानक अहसास होता है कि मेरा सोचने वाला दिमाग वास्तविकता का अनुभव नहीं कर सकता। यह समझने के लिए कि मैं इस समय में वास्तव में क्या हूं, मुझे ईमानदारी और विनम्रता की आवश्यकता है, और एक बेपर्दा व्यक्तित्व की जिसके बारे में मुझे पता नहीं है। इसका अर्थ है किसी भी चीज़ को न नकारने से, किसी चीज़ को न छोड़ने से, और उस खोजने के अनुभव में प्रवेश करने से जो कि मैं सोचती हूँ, जो कि मैं समझती हूं, जो मैं महसूस करती हूँ, जो मैं चाहती हूं, सब कुछ इसी क्षण में ।

हमारे अनुकूलित विचार हमेशा एक जवाब चाहते हैें। महत्वपूर्ण यह है कि एक और सोच, एक और दृष्टि का विकास किया जाए। इसके लिए हमें एक निश्चित ऊर्जा को मुक्त करना होगा जो हमारे सामान्य विचारों से परे है। मुझे आवश्यकता है बिना कोई जवाब खोजे यह अनुभव करने की कि "मैं नहीं जानती", अज्ञात में प्रवेश करने के लिए सब कुछ त्याग देने की। तो यह अब वही दिमाग नहीं रह जाता। मेरा मन एक नए तरीके से जुड़ता है। मैं बिना किसी भी पूर्वकल्पना के, बिना किसी पसंद के देखती हूं। विश्राम के लिए, उदाहरण के लिए, अब मैं यह जानने से पहले आराम करने का चुनाव नहीं करती हूं कि मैं क्यों विश्राम कर रही हूँ। मैं अपनी दृष्टि की शक्ति को शुद्ध करना सीखती हूं, अवांछनीय चीज़ों से मूँह मोड़कर या अनुकूल चीज़ों की ओर रुख कर के नहीं। मैं सामने रहना और स्पष्ट रूप से देखना सीखती हूं। सभी चीजों का समान महत्व है, और मैं किसी भी चीज़ पर अटकती नहीं हूँ। सब कुछ इस दृष्टि पर निर्भर करता है, एक नज़र पर जो मेरे विचार के किसी भी संकेत से नहीं आता, लेकिन जानने की तात्कालिकता की भावना से आता है।

धारणा, वास्तविक दृष्टिकोण, एक विचार की स्वीकृति की पुरानी प्रतिक्रिया और नई प्रतिक्रिया के बीच के अंतराल में आता है। पुरानी प्रतिक्रिया हमारी स्मृति में अंकित चीज़ों पर आधारित है। अतीत से मुक्त नई प्रतिक्रिया के साथ, दिमाग खुला रहता है, ग्रहणशील, सम्मान के दृष्टिकोण में। यह एक नया दिमाग है जो कार्य करता है, यानि कि, भिन्न कोशिकाएं और एक नई समझ। जब मैं देखती हूं कि मेरा विचार समझने में असमर्थ है, कि इसकी गति कुछ भी नहीं लाती, तो मैं मानव धारणा के दायरे से परे, ब्रह्मांडीय भावना के लिए खुल जाती हूं।

प्रतिबिंब के लिए बीज प्रश्न: देखने के कार्य में एक निश्चित आजादी ढूंढने से आप क्या समझते हैं? क्या आप अपना कोई अनुभव बाँट सकते हैं जब आपने किसी जवाब की खोज किए बिना "मैं नहीं जानता" का अनुभव किया है? आपको सामने रहने और स्पष्ट रूप से देखने में किस चीज़ से मदद मिलती है?

जीन डे साल्ज़मान द्वारा, पैराबोला से अंशित
 

by Jeanne de Salzmann, excerpted from Parabola.


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