Rajiv Khandelwal

अंतर्यात्रा : राजीव खंडेलवाल

लॉक डाउन की घोषणा के बाद, हमें एहसास हुआ कि प्रवासी मज़दूर जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा हैं, हम उन्हें उपेक्षा दृष्टि से देखतें हैं | पहली बार हमने इन ‘ऋतुकालीन शरणार्थियों’ के दर्द को महसूस किया | इनका हमारी शहरी ज़िंदगी को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है, परंतु राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था से वे बहिष्कृत हैं | इनकी घर वापसी की लम्बी पदयात्रा की कहानियों ने हमें स्तब्ध कर दिया - इनमें भूख, खोई हुई उम्मीद, संघर्षपूर्ण दृढ़ता, निष्क्रिय असहयोग और कदाचित सभ्य समाज की उदासीनता के प्रति सक्रिय मतभेद की झलक दिखाई दी |

हमारे अतिथि श्री राजीव खंडेलवाल ने इन मुद्दों को पिछले दो दशकों से अपनी कर्मभूमि बनाया है | इनके द्वारा स्थापित संस्था ‘आजीविका ब्यूरो’ अपने देश के १५ करोड़ अर्ध-प्रशिक्षित प्रवासी मज़दूरों की समस्याओं के प्रति सजग होने का प्रथम प्रयास है |

राजीव के साथ ‘अवेकिन टॉक’ पर ५ जुलाई २०२० सुबह १० बजे (भारतीय समयानुसार) संवाद करेंगी रजनी बक्शी|

जैसा हम जानतें हैं, रजनी गाँधी-चिंतक हैं। प्रवासी मज़दूरों का विषय गांधीजी के ग्राम स्वराज और रचनात्मक कार्य जैसे विचारों से जुड़ा है | रजनी और राजीव इस पर तो संवाद करेंगे ही | और हाँ, ‘आजीविका’के
जन्म की प्रेरणादायक कहानी भी हम सुनेंगे राजीव की ज़ुबानी | रजनी राजीव के बहुआयामी व्यक्तित्व से हमें साक्षात् करायेंगी | और इस गहन विषय से जुड़े राजीव खुद किससे प्रेरित है, कबीर सत्संग के प्रति राजीव के गहरे लगाव, उनके जीवन के मूल्य क्या है, इससे हमें साक्षात् कराएंगी  |

Awakin Talk with Rajiv Khandelwal:

During lockdown, we realized how the hitherto unnoticed migrant workers were an integral part of our daily lives. We experienced the pain of these “economic refugees” who, while contributing tremendously to our comfortable urban lives, are excluded from the formal political and legal systems. Stories of their long walk to home --- of hunger, perseverance, an expression of lost hope, of passive non-cooperation, and sometimes active dissent towards the apathy of civil society --- moved us. 

Our guest Speaker Rajiv Khandelwal has been churning these issues for the past two decades, and more. On the Awakin Talk on Sunday, July 5, 2020, AT 10 AM IST  Rajni Bakshi will moderate the conversation with Rajiv on what lies at the root of this seasonal migration, and the issues that plague the migrants, how this issue of migrant workers intersects with Gandhi’s idea of gram-swaraj and constructive work, and of course, what inspired the birth of Aajeevika. Rajni will also explore Rajiv’s inner journey, and the multiple facets of his person - who, on one hand,  interacts with World Economic Forum kind of platforms and continues to nurture his deep love for the Bhil communities’ folk idiom and satsang on the other. 

एक परम्परागत व्यापारी कुटुंब में पले राजीव ने कॉमर्स कोलेज के दिनों पहली बार समाज के विभिन्न वर्गों से आए विद्यार्थियों के सम्पर्क में आए और सामाजिक असमानता से वाक़िफ़ हुए | करीब उसी समय घटी एक घटना ने इस युवक के मन पर गहरी छाप छोड़ी | राजीव एक अंध विद्यार्थी की परीक्षा में पेपर लिखने की सेवा दे रहे थे। विद्यार्थी ने दिए हुए गलत जवाब को अपनी ओर से सही करके लिखा।  जब यह सत्य सामने आया तब राजीव को खूब डांट पड़ी। तब उन्हें एहसास हुआ कि सहानुभूति  (न की हृदयपूर्वक करुणा) के भाव से किए तथाकथित अच्छे कर्म भी लाभ पानेवाले को कमज़ोर बनाते हैं | ऐसी घटनाओं ने उनके जीवन की दिशा तय की और उन्होंने चार्टेड अकाउंटन्सी की जगह इन्स्टिटूट ऑफ़ रुरल मैनज्मेंट (IRMA आणंद, गुजरात) में दाख़िला लिया | फ़ील्ड असायन्मेंट के सिलसिले में वो बार बार गाँव देहात के दूर दराज के इलाक़ों में जाते थे, वहाँ उनका सामना हुआ दमनकारी सामाजिक व्यवस्था और दारुण ग़रीबी से | इस अनुभव ने राजीव की जिज्ञासा को जागृत किया - उन्हें  एहसास हुआ कि ग्रामीणों की आवाज़ को ध्यानपूर्वक सुनने से भी उनकी कई विषम समस्याओं को बोज हल्का हो सकता है। (दुर्भाग्य से आजकी युवाशक्ति की दौड़ गाँव से विपरीत दिशा की ओर है। ) 

और यहीं से जन्म हुआ ‘आजीविका ब्यूरो’ का | समय के साथ ‘आजीविका’ प्रवासी मज़दूरों के लिए एक सेवाछत्र सा बन गया है - जैसे कि उनकी पहचान के आई डी कार्ड देना, क़ानूनी सहायता, आर्थिक मदद, स्वास्थ्य सेवा, उनके गंतव्य स्थान संबंधी सहयोग और कौशल प्रशिक्षण | ब्यूरो ग्रामीण समुदायों की स्थानीय वास्तविकताओं को समझने में अग्रणी रहा है। 

राजीव को 2005 में अशोका फेलो के रूप में नामित किया गया था और 2010 में श्वाब फाउंडेशन द्वारा सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर से सम्मानित किया गया था। राजीव 30 साल से उदयपुर में रहते हैं  अपनी माता के साथ ।देश विदेश में स्थित कई मित्र और उनकी गहरी मैत्रि को ही राजीव अपने जीवन की सही संपत्ति मानते हैं।  

Bio

Scion of a traditional business family, Rajiv chose Commerce in college. For the first time, Rajiv mingled with students from different backgrounds. Once while volunteering, Rajiv was reprimanded for doctoring a blind student’s incorrect response. He realized that even good deeds, done through a lens of sympathy (and not compassion) can be debilitating for the receiver. Such incidents and exposure to social iniquities in college set the course for his life. Instead of pursuing CA, he joined the Institute of Rural Management at Anand in Gujarat.

At IRMA, he encountered harsh poverty and oppressive social systems through his frequent field assignments in the interiors. Rajiv realized that listening to the people was the most important; solutions follow. After solid immersion in rural, adivasi communities of Rajasthan, Rajiv and his old friend established Aajeevika Bureau to respond to the reality of massive out-migration of rural poor to urban labour markets. Aajeevika Bureau - as an umbrella portal for services that include legal aid, financial services, reskilling - has delivered several innovative solutions to reduce the hardship confronting millions.

Rajiv was nominated as an Ashoka Fellow in 2005 and Social Entrepreneur of the Year by Schwab Foundation in 2010. Udaipur has been home to Rajiv for 30 years now – where he stays with his mother. Rajiv has a large and diverse community of friends everywhere in the country and a few precious ones beyond borders.