क्या शिक्षण और अनुशासन में प्रेम को बुनना संभव है? प्रेम के अभाव में पालनेवाले बालक के व्यक्तित्व विकास में क्या कमी रह जाती है ? प्रेमसभर शिक्षण क्या प्रेमसभर शिक्षक के बिना शक्य है?
How is love an essential ingredient in the development of a child? Is there a contradiction between love and academic development? Is education of the heart possible without heartful educators?
This Sunday, Gandhian educator Ramesh Sanghvi will be in conversation with Chaitanya Bhatt, the founder of "Ka-shaala" in Dhedhuki village, Gujarat. The conversation will be in Hindi.
शांत, स्थिर ज्योति - रमेशभाई
१९४७ में भारतवर्ष की स्वतंत्रता के वर्ष में रमेश भाई संघवी का जन्म हुआ - बचपन से ही इस बालक में गाँधी और विनोबा विचार का सिंचन प्राप्त हुआ। सादगी और सात्विकता के जीवनमूल्य, पुस्तकप्रेम इस अंतर्मुखी बालक को अपने मातापिता से विरासत में मिलें, और उन्होंने अपने जीवनकार्यों द्वारा इन मूल्यों का संवर्धन किया। उनके जन्मगत संस्कारो को लोकभारती (सणोसरा) में अध्ययन से पुष्टि मिली। जीवन निर्वाह के लिए लगभग दो दशक स्कूल-कॉलेज में अध्यापन किया पर उनकी रूचि केवल आर्थिक-उपार्जन केंद्रित जीवन की उपेक्षा साहित्य-ज्ञान-विज्ञान प्रचार-प्रसार। इसी उद्देश्य से "अक्षर भारती" तथा अन्य कई संस्था की स्थापना की और उनको पुष्ट किया । "हाथ से काम और ह्रदय में राम" इस लक्ष्य से कच्छ के खडीर गांव में आदिवासी बच्चों के लिए जीवनलक्षी शिक्षण और ग्रामोत्थान की लौ लगायी। रमेशभाई अपने सभी कार्यं में लोकभागीदारी, साथियों के विश्वास को प्राधान्यता देते है - पर साथ ही साथ उनकी त्वरित निर्णयशक्ति और दातासंघ में उनकी प्रतिष्ठा भी उतनी ही प्रशंशनीय है। पर रमेशभाई संस्थासर्जक बाद में है, अंतर्यात्री पहले है । अपने परिवारजनों और मित्रसंघ ने उनके गृहस्थी-साधुत्व को निखारने में सतत सहायभूत बने रहे है । उन्होंने अनेक पुस्तकों का संपादन किया है जिसमे शिक्षाक्षेत्र, अध्यात्म और हृदयरोग (२००१ में रमेशभाई को दिल का दौरा पड़ा) विशेष रहे है। गाँधी जीवन मूल्यों के प्रसारार्थ वे "शाश्वत गाँधी" गुजराती द्विमासिक का संपादन कर रहे है। शिक्षण का क्षेत्र उनको प्रिय रहा है - कई संस्थाओं ने उनको अनेक पारितोषिक जैसे कि सिस्टर निवेदिता अवार्ड, सांदीपनि अवार्ड, कच्छ शक्ति अवार्ड इ. से नवाजा है। उनके परिवार में उनकी अर्धांगिनी ज्योतिबेन, २ पुत्रियां और १ पुत्र है।
Born in 1947 the year of India's freedom from Britain, Rameshbhai Shah is a child of freedom movement - brought up with the Gandhi-Vinoba values from parents who sought to balance both inner and outer work. 'Simple living and high thinking' remained a guiding principle for young Ramesh, who loved to read. He got educated under the aegis of Lokbharti, Sanosara - again, building up his Gandhian gene. Rameshbhai served as an academician and teacher in various institutes for around two decades to earn his livelihood. But he realized the debilitating power of the clutches of commercialism and opted out of the mainstream system to blaze a trail on his own. An institution builder, he founded, among others 'Akshar Bharti' to spread the message of true learning among the children. Another cause close to his heart is that of village development. He wholeheartedly devoted his energies in a small aadivasi village in Kutch, teaching kids and guiding adults alike. Balancing collective decision making with a bias for action, he earned the trust of the donor community. As a result, any project associated with Rameshbhai would likely never suffer from lack of resources. But all along, institution building takes second spot to his spiritual seeking. His family and friends alike, chief among them his life partner Jyotiben, have supported his journey for it to bloom the beautiful way it has. He has written and contributed to several books - in the sphere of education, spirituality and coronary heart disease (Rameshbhai suffered three heart attacks in early 2000s). Currently, he edits the Gujarati bi-monthly "Shashwat Gandhi" (Eternal Gandhi). He has been a recipient of several awards viz. Sister Nivedita award, Sandipani award, et al. We welcome him and hope to dive deep into his lifelong tryst in the field of education of the heart.
चैतन्य भट्ट एक शिक्षक हैं, जिनके जीवन गांधीविचार से प्रेरित है। उनका जीवन एक प्रयोगशाला है - इस मंत्र का कि कैसे शिक्षण और स्वाध्याय, महत और लघु, आतंरिक और बाह्य कैसे एक दुसरे के पूरक है।
धेदुकी (गुजरात) के एक छोटे से गांव में, वे "क-शाला" नामक एक स्कूल चलाते हैं और उनका मानना है कि कोई और हमें जीवनमूल्य सिखा नहीं सकता बल्कि स्वयंस्फुरणा से मूल्य का उद्भव होता है। स्थानीय संसाधनों का रचनात्मक उपयोग, सतत छोटे बड़े अभिनव प्रयोग करते रहना, और आसपास के लोगों के साथ सूक्ष्म और सघन सम्बन्ध बनाना - यह उनका कई दशकों का यज्ञकार्य रहा है। चैतन्य भाई दुनिया भर में सामाजिक बदलाव के लिए आदर्श हैं।
उनकी प्रतिभा की प्रशंशा स्वीडन जैसे देशो द्वारा की गयी है। परन्तु चैतन्य भाई, कैसे छोटे से छोटे तरीकों में बड़े से बड़े सामाजिक परिवर्तन की नीव छिपी है, उसपे प्रकाश डालना ज्यादा पसंद करेंगे। उनके उल्लेखनीय कार्यों के बारे में कुछ सामग्री मिलनी इंटरनेट पर भी मुश्किल है - एक "क-शाला" स्वयंसेवक ने लिखा हुआ यह ब्लॉग मिला शायद आपको उनके काम का परिचय दे।
Chaitanya Bhai is a Gandhian educator, whose idea of scale is to go from small to smaller. In a small village of Dheduki, he runs a school that is steeped in virtues, that he feels are "caught not taught." Getting creative with local resources, innovating in small ways and big, after decades of work, and building deep community ties along the way, Chaitanya Bhai is a model for social change world over. He has received recognition from countries as far away as Sweden, but when you meet him, he will opt to tell you stories of how they started their dorm by putting a flat log of wood on a treetop. In keeping with that spirit, you would be hard pressed to find material on him on the internet, but here's an account by a young man who lived with him in Dheduki for a year.
कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ जो आपको जीवंत होने का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ देता है पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿,पीड़ा - संवेदना,महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का जीवन और जीवन का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ देता है।
आपके जीवन का à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मोड़ : à¤à¥‚कंप के बाद तीन heart atteck,और डोकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ बचनेकी आशा छोड़ दी थी फिर à¤à¥€ लोगोंकी,साथीओंकी,परिवार जनों की दà¥à¤† à¤à¤µà¤‚ सारवार-चिकितà¥à¤¸à¤¾ से बचने के बाद à¤à¤• बात मनमें यह आई की अब शेष जीवन बोनस है तो संà¤à¤¾à¤² के और ओरों के à¤à¤²à¥‡ केलिठइसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² करना है।
किसी और का आपके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कोई à¤à¤¸à¤¾ नेक कृतà¥à¤¯ जो आप कà¤à¥€ नहीं à¤à¥‚लेंगे? ख़ास कर संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ में मिला लोक सहयोग à¤à¤µà¤‚ उसे चलाने में मिला दाताओं का सहयोग सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ रहेगा।
कोई आपकी à¤à¤¸à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ जो आपके "बकेट लिसà¥à¤Ÿ" में हैं अब इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ ले ली है,फिर à¤à¥€ शिकà¥à¤·à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤°à¤¾à¤® केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥€ हो उसके घनिषà¥à¤ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— उपरांत गà¥à¤°à¤¾à¤® रोज़गारी à¤à¤µà¤‚ गà¥à¤°à¤®à¥‹à¤¦à¥à¤¯à¥‹à¤— - गà¥à¤°à¤¾à¤® निरà¥à¤®à¤¾à¤£ के कारà¥à¤¯ विशेष करने थे।
जगत के लिठà¤à¤• वाकà¥à¤¯ में सनà¥à¤¦à¥‡à¤¶ सà¥à¤µ और सरà¥à¤µ के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ केलिठजीना ही महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है।सरà¥à¤µ में मानव, मानवेतर, पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿-परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£ सब हैं,बस उसकी सेवा-अहंकारमà¥à¤•à¥à¤¤ चेतना से करनी चाहिà¤à¥¤